एक निजी समाचार चैनल के अनुसार आयोग ने अपनी रिपोर्ट में राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ कांग्रेसी नेता भूपिंदर सिंह हुड्डा को कानून के खिलाफ काम करने का दोषी पाया है। चैनल ने विश्वस्त सूत्रों के हवाले से खबर दी है कि आयोग ने हुड्डा को ‘खास’ तरीके से जमीनों के लाइसेंस बांटने का दोषी पाया है। गौरतलब है कि आयोग ने अपनी जांच के दौरान हुड्डा को दो बार पूछताछ के लिए बुलाया था मगर हुड्डा जांच आयोग के सामने पेश नहीं हुए थे।
हरियाणा की भारतीय जनता पार्टी सरकार ने पिछले साल इस जांच आयोग का गठन किया था। न्यायमूर्ति ढींगरा दिल्ली हाई कोर्ट के सेवानिवृत जज हैं। उन्होंने अपनी 182 पन्नों की यह रिपोर्ट राज्य के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को सौंपी। उन्होंने रिपोर्ट के तथ्यों का खुलासा करने से मना कर दिया मगर यह जरूर कहा कि जमीनों के लाइसेंस बांटने में अनियमितता हुई है। उन्होंने यह भी कहा कि रिपोर्ट में उन्होंने इसके लिए जिम्मेदार सभी लोगों के नाम लिखे हैं जिनमें नेता, सरकारी अधिकारी से लेकर निजी व्यक्ति तक शामिल हैं।
माना जा रहा है कि इस रिपोर्ट में सरकारी अधिकारियों और उनके साथ मिलकर फायदा उठाने वाले निजी लोगों के खिलाफ कार्रवाई करने की सिफारिश की है। न्यायमूर्ति ढींगरा ने कहा कि उनका काम था जांच करके रिपोर्ट दे देना। अब इसपर एक्शन लेने की जिम्मेदारी राज्य सरकार की है।
गौरतलब है कि वाड्रा लगातार यह कहते रहे हैं कि उन्होंने कुछ भी गलत नहीं किया है और न ही उनके परिवार की पार्टी के सत्ता में रहते कोई अप्रत्याशित लाभ उठाया है। उन्होंने कहा है कि वह किसी भी चुनौती का सामना करने के लिए तैयार हैं। गांधी परिवार और कांग्रेस इस मामले को बदले की कार्रवाई करार दे रही है।
वाड्रा मामला हरियाणा कैडर के आईएएस अधिकारी अशोक खेमका द्वारा कानूनी कार्रवाई किए जाने के आदेश के बाद चर्चा में आया था। हरियाणा विधानसभा चुनाव और उससे पहले लोकसभा चुनाव के दौरान नरेंद्र मोदी इस मसले को उठाते रहे थे। संप्रग शासन में कोल जी, टूजी और जीजा जी घोटालों का नारा चुनाव के दौरान खूब उछाला गया था। भाजपा को इसका फायदा भी मिला था और पहली बार वह केंद्र में पूर्ण बहुमत की सरकार और हरियाणा में पहली बार पार्टी की सरकार बनाने में कामयाब हुई। हालांकि चुनाव जीतने के बाद उसने लंबे समय तक वाड्रा जमीन मसले में चुप्पी साधे रखी मगर बाद में ढींगरा आयोग का गठन हरियाणा सरकार ने किया। हालांकि किसी विवाद से बचने के लिए सिर्फ वाड्रा की जमीन नहीं बल्कि 250 जमीन लाइसेंस आवंटन की जांच इसे सौंपी गई।
वैसे खास बात यह भी रही कि आयोग ने इस मसले में रॉबर्ट वाड्रा का पक्ष व्यक्तिगत रूप से जानने की कोई कोशिश नहीं की। उन्हें व्यक्तिगत पूछताछ के लिए नहीं बुलाया गया। सिर्फ उनकी कंपनी स्काईलाइट हॉस्पीटेलिटी को प्रश्नावली भेजकर जवाब मांगे गए थे जो कंपनी ने मुहैया करा दिए थे।
वाड्रा मामले का पूरा विवाद गुड़गांव की साढे तीन एकड़ जमीन से जुड़ा है। इस जमीन को वाड्रा की कंपनी स्काईलाइट हॉस्पीटेलिटी ने 2008 में साढ़े सात करोड़ रुपये में खरीदा था। इसके बाद इस जमीन को हरियाणा सरकार ने लैंड यूज बदलने का लाइसेंस दे दिया था। सिर्फ एक महीने के बाद वाड्रा ने इस जमीन को डीएलएफ को 58 करोड़ रुपये में बेच दिया। विपक्षी पार्टियों ने आरोप लगाया कि कांग्रेस सरकार होने का फायदा उठा कर वाड्रा ने इतना भारी मुनाफा कमाया।