नई दिल्ली। बाजार में मधुमेह की नित नई-नई दवाएं आ रही हैं लेकिन बीमारी का दायरा सालाना बढ़ता जा रहा है। ऐसे में वर्ल्ड जर्नल ऑफ डायबिटीज में प्रकाशित एक ताजा अध्ययन बताता है कि मधुमेह का उपचार प्रकृति की गोद में छिपा है और जरूरत सिर्फ गहराई से शोध करने की है। इससे मधुमेह की रोकथाम के मौजूदा प्रयासों को एक नई दिशा मिल सकती है।
पांडिचेरी स्थित जवाहरलाल स्नातकोत्तर चिकित्सा शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान (जेआईपीएमईआर) और पश्चिम बंगाल के कल्याणी स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के शोधकर्ताओं के इस संयुक्त अध्ययन में बताया कि प्रकृति में करीब 400 ऐसे औषधीय पादप मौजूद हैं जो रक्त में शर्करा की मात्रा को कम करने में कारगर हो सकते हैं जो टाइप 2 मधुमेह रोग के नियंत्रण के लिए जरूरी है। हालांकि इनमें से अभी तक 21 औषधीय पादप के बारे में ही प्रभावी अध्ययन हुए हैं। जबकि आठ औषधीय पादपों को लेकर आंशिक आंकड़े मौजूद हैं।
अध्ययन में यह भी बताया कि विजयसार, जामुन, जीरा, दारुहरिद्रा, एलोवेरा, बेल, मेथी, अदरक, नीम, आमला सहित 21 पादप में मौजूद सक्रिय तत्व शर्करा को कम करते हैं। इनमें कई पादपों से मधुमेह रोधी दवाएं बनी हैं जिनका मरीजों के इलाज में काफी असर मिला है। इन्हीं में से एक दवा बीजीआर-34 को वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) ने गहन अध्ययन के बाद तैयार किया जिसे बाजार में वितरण के लिए एमिल फार्मास्युटिकल्स को हस्तांतरित किया गया।
जानकारी के अनुसार, यह दवा में एक नहीं बल्कि चार औषधि दारुहरिद्रा, गुड़मार, मेथी और विजयसार से प्राप्त विभिन्न प्रभावी फाइटो कंपाउंड हैं। इनके अलावा प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए इसमें गिलोय और मजीठ जैसे पादप भी मिलाए गए हैं। हाल ही में, नई दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) ने एक अध्ययन में आयुर्वेदिक दवा बीजीआर-34 को मधुमेह रोगियों के लिए न सिर्फ असरदार पाया बल्कि इसके सेवन से रोगियों के उपापचय (मेटाबॉलिज्म) तंत्र में भी सुधार देखा गया।
एमिल फार्मास्युटिकल के कार्यकारी निदेशक डॉ. संचित शर्मा बताते हैं कि प्रकृति में अनेकों तरह की गुणकारी औषधियां मौजूद हैं। इसकी जानकारी चिकित्सा और आयुर्वेद के प्राचीन ग्रंथों में भी उपलब्ध है। चूंकि भारत में मधुमेह रोगियों की संख्या काफी अधिक है। ऐसे में मॉडर्न रिसर्च के तहत अन्य औषधियों पर शोध, चिकित्सा क्षेत्र को एक नई उपलब्धि दे सकते हैं।
शोधकर्ताओं ने अध्ययन में यह भी बताया कि मधुमेह की दवा मेटफोर्मिन का स्रोत भी औषधीय पौधा है जिसे गलेगा आफिसिनैलिस पौधे से प्राप्त किया जाता है। 19वीं सदी में यूरोप में इस पादप का उपचार मधुमेह रोग के नियंत्रण में होता था। इसी प्रकार सेब के पेड़ की छाल से फ्लोरिजिन की प्राप्ति के बाद इससे मधुमेह में कारगर एसजीएलटी-2 का निर्माण किया गया।
रिपोर्ट के अनुसार एलोपैथिक दवाओं की भांति हर्बल औषधि के मामले में भी सक्रिय तत्व की जानकारी होना जरूरी होता है। साथ ही यह भी पता हो कि यह एक्टिव कंपाउंड पादप के किस हिस्से जैसे जड़, छाल, फल, पत्ते, फूल या बीज से प्राप्त होता है।