श्रीनगर की फ्रीलांस फोटो जर्नलिस्ट मसरत जाहरा और ‘द हिंदू’ के रिपोर्टर पीरजादा आशिक के साथ जम्मू-कश्मीर पुलिस के बर्ताव पर एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने चिंता जताई है। गिल्ड ने इन दोनों के खिलाफ दर्ज केस वापस लेने की मांग की है। पीरजादा की एक रिपोर्ट पर पुलिस ने उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की है, जबकि मसरत के खिलाफ अनलॉफुल एक्टिविटीज प्रिवेंशन एक्ट (यूएपीए) के तहत मामला दर्ज किया गया है। एक बयान में एडिटर्स गिल्ड ने कहा कि मुख्यधारा की मीडिया में कुछ प्रकाशित किए जाने या सोशल मीडिया के किसी पोस्ट पर इस तरह की कार्रवाई करना अधिकारों का दुरुपयोग है। इसका एकमात्र मकसद पत्रकारों में आतंक पैदा करना हो सकता है। गिल्ड के अनुसार यह देश के बाकी हिस्से में पत्रकारों को धमकाने का भी परोक्ष तरीका है।
‘तथ्यात्मक फोटो पोस्ट करने पर यूएपीए लगाना गलत’
गिल्ड की मांग है कि कश्मीर के दोनों पत्रकारों को किसी तरह का नुकसान न पहुंचाया जाए और उन्हें परेशान न किया जाए। अगर सरकार को उनकी रिपोर्ट से कोई शिकायत है तो उससे निपटने के सामान्य तरीके भी हैं। तथ्यात्मक फोटो को सोशल मीडिया पर डालने मात्र से किसी पर आतंकवादियों से निपटने वाला यूएपीए कानून नहीं लगाया जा सकता। जहां तक ‘द हिंदू’ के रिपोर्टर की बात है, तो अखबार के संपादक के पास शिकायत की जा सकती थी।
कश्मीर प्रेस क्लब भी कर चुका है पुलिस कार्रवाई की आलोचना
इससे पहले, कश्मीर प्रेस क्लब ने गृह मंत्री अमित शाह, लेफ्टिनेंट गवर्नर जीसी मुर्मू और डीजीपी दिलबाग सिंह पत्र लिखकर कहा था कि मसरत को परेशान न किया जाए। प्रेस क्लब की तरफ से जारी बयान में कहा गया, “कश्मीर में पत्रकारिता करना कभी आसान नहीं रहा। 5 अगस्त 2019 से यहां पत्रकारों के लिए चुनौतियां और मुश्किलें कई गुना बढ़ गई हैं। कोविड-19 महामारी के समय भी पत्रकारों को थाने बुलाया जाता है और उनसे उनकी खबरों को लेकर पूछताछ की जाती है। ऐसे मामले भी सामने आए हैं जहां पत्रकारों को रिपोर्टिंग के लिए जाने पर परेशान किया गया। 19 अप्रैल को पुलिस ने एक राष्ट्रीय दैनिक के लिए काम करने वाले एक वरिष्ठ पत्रकार (पीरजादा आशिक) को मौखिक आदेश देकर बुलाया और उसकी एक रिपोर्ट में तथाकथित गलत तथ्यों के बारे में पूछताछ की। उस पत्रकार ने श्रीनगर थाने में जाकर अपनी बात कही जहां उसे उसी शाम को 40 किलोमीटर दूर अनंतनाग के एक पुलिस अधिकारी के सामने हाजिर होने के लिए कहा गया।”