एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने विभिन्न राज्यों द्वारा पत्रकारों के खिलाफ फर्जी आरोपों को लेकर दर्ज होने वाले मामलों पर चिंता जताई है। गिल्ड का कहना है कि पुलिस में इस तरह की प्रवृत्ति बढ़ रही है कि वह पत्रकारों के खिलाफ असंगत आरोपों पर संज्ञान ले रही है और इसे एफआईआर में तब्दील कर रही है। गिल्ड ने इसकी निंदा की है और पुलिस से संवैधानिक रूप से मिले स्वतंत्रता के अधिकार का सम्मान करने का अनुरोध किया है।
दिल्ली पुलिस की एफआईआर का ताजा मामला अनुभवी पत्रकार विनोद दुआ के खिलाफ है, जो नवीन कुमार की शिकायत पर किया गया है। शिकायतकर्ता की पहचान भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता के रूप में की गई है। उन पर लगाए गए आरोप उनकी स्वतंत्रता और निष्पक्ष टिप्पणी के अधिकार पर बड़ा हमला है। इस तरह की एफआईआर उत्पीड़न का एक साधन है और अपने में एक सजा है।
पुलिस की प्रवृत्ति ठीक नहीं
गिल्ड स्पष्टतौर पर इस तरह की प्रथा का निंदा करती है और पुलिस से अनुरोध करती है कि स्वतंत्रता पर सवाल उठाने के बजाय संवैधानिक तौर पर मिले अधिकार का सम्मान करे। पत्रकारों के खिलाफ विभिन्न राज्यों की पुलिस द्वारा की यह प्रवृत्ति सही नहीं कही जा सकती।
शिकायत में ये लगाया आरोप
बता दें कि क्राइम ब्रांच को अपनी शिकायत में नवीन कुमार ने यू-ट्यूब पर "द विनोद दुआ शो" के माध्यम से दुआ पर "फर्जी खबर फैलाने" का आरोप लगाया। कुमार ने दुआ पर दिल्ली सांप्रदायिक हिंसा की गलत रिपोर्टिंग करने का आरोप भी लगाया जिसमें दुआ ने कहा कि केंद्र सरकार ने हिंसा को रोकने के लिए कुछ नहीं किया है। कुमार ने आरोप लगाया कि दुआ ने प्रधानमंत्री को "दंतविहीन" कहा था।
मीडिया लोकतंत्र का अभिन्न अंग
इससे पहले गिल्ड ने ‘फेस ऑफ नेशन ’नामक एक गुजराती समाचार पोर्टल के संपादक और मालिक धवल पटेल को न केवल हिरासत में लेने और उन पर मुकदमा दर्ज करने को लेकर चिंता व्यक्त की थी और कानून के दुरुपयोग रोकने की मांग की थी। गिल्ड ने कहा था कि गुजरात और दिल्ली में पुलिस की कार्रवाई कानून के दुरुपयोग के उदाहरण हैं। सरकार और पुलिस को यह समझना चाहिए कि मीडिया किसी भी लोकतंत्र में शासन संरचना का एक अभिन्न अंग है।