गुजरात चुनाव की घोषणा न करने को लेकर विवादों में घिरे चुनाव आयोग को बीजेपी के युवा सांसद वरुण गांधी ने बिना दांतों और बिना शक्तियों वाला शेर बताया। शुक्रवार को केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर चुनाव आयोग को स्वतंत्र संस्था बताया था। वरुण गांधी ने आयोग पर कड़े सवाल करते हुए कहा कि आयोग ने निर्धारित समय के भीतर चुनावी खर्च के आंकड़ों को जमा न करने वाले राजनीतिक दलों को कभी निरस्त नहीं किया।
वरुण गांधी ने कहा कि राजनीतिक पार्टियां चुनावी कैंपेन पर बहुत अधिक खर्च करती हैं और चुनाव लड़ने के लिए सामान्य पृष्ठभूमि से आने वाले लोगों को मौका नहीं देती है। न्यूज़ एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, वरुण ने कहा कि चुनाव आयोग के साथ सबसे बड़ी समस्या है कि यह वास्तव में एक बिना दांतों वाला शेर है। संविधान का हवाला देते हुए वरुण ने कहा, 'आर्टिकल 324 के अनुसार चुनाव आयोग का काम चुनाव कराने, चुनाव की प्रक्रिया को नियंत्रित करने का है। क्या सच में ऐसा होता है?'
नाल्सार यूनिवर्सिटी ऑफ लॉ में वरुण ने कहा, इसके पास इतनी शक्ति नहीं है कि चुनाव खत्म होने के बाद वह मामला दर्ज करा सके जबकि ऐसा करने के लिए वह सुप्रीम कोर्ट जा सकती है। उनका यह बयान ऐसे समय में आया है जब गुजरात विधानसभा के चुनाव की तारीख हिमाचल प्रदेश विधानसभा के साथ घोषित न करने को लेकर भाजपा विपक्ष के निशाने पर है।
बता दें कि हिमाचल प्रदेश के साथ गुजरात विधानसभा के चुनाव की तारीख का ऐलान न किए जाने पर विपक्ष का आरोप है प्रधानमंत्री की रैली को देखते हुए भाजपा ने ऐसा करने के लिए चुनाव आयोग पर दबाव डाला है। कांग्रेस का आरोप है कि यह भाजपा की शर्मनाक हरकत है कि वह आयोग पर दबाव डालकर अंतिम समय चुनावी घोषणाएं करके जनता को ललचाना चाहती है।
गांधी ने कहा, चुनाव खत्म हो जाने के बाद उसके पास मुकदमे दायर करने का अधिकार नहीं है, ऐसा करने के लिए उसे सुप्रीम कोर्ट जाना पड़ता है। उत्तर प्रदेश की सुल्तानपुर लोकसभा सीट से भाजपा सांसद ने कहा कि समय पर चुनावी खर्च दाखिल नहीं करने को लेकर आयोग ने कभी किसी राजनीतिक पार्टी को अमान्य घोषित नहीं किया।
वरुण बोले, यूं तो सारी पार्टियां देर से रिटर्न दाखिल करती हैं, लेकिन समय पर रिटर्न दाखिल नहीं करने को लेकर सिर्फ एक राजनीतिक पार्टी एनपीपी, जो दिवंगत पीए संगमा की थी, को अमान्य घोषित किया गया और आयोग ने उसकी ओर से खर्च रिपोर्ट दाखिल करने के बाद उसी दिन अपने फैसले को वापस ले लिया। उन्होंने कहा कि 2014 के लोकसभा चुनाव के लिए आयोग को आवंटित बजट 594 करोड़ रुपए था, जबकि देश में 81.4 करोड़ वोटर हैं। इसके उलट, स्वीडन में यह बजट दोगुना है जबकि वहां वोटरों की संख्या महज 70 लाख है।
इस दौरान वरुण ने चुनावी व्यवस्था में धनबल के अत्यधिक प्रभाव को स्वीकार करते हुए कुछ उदाहरण दिए और कहा कि गरीबों और मध्यम वर्ग के लोगों के लिए संसद और विधानसभाओं के चुनाव लड़ना लगभग असंभव हो गया है।
राजनीतिक पार्टियों की ओर से चुनाव प्रचार पर बड़ी धनराशि खर्च करने का जिक्र करते हुए भाजपा नेता ने कहा, तकनीकी तौर पर कोई विधायक उम्मीदवार 20 से 28 लाख रुपये के बीच खर्च कर सकता है और सांसद प्रत्याशी 54 से 70 लाख रुपये खर्च कर सकते हैं, लेकिन आपको नहीं बताया जाता कि राजनीतिक पार्टियां चुनावों पर अकूत धन खर्च करती है।
वरुण ने कहा कि राजनीतिक खर्च की प्रणाली सुनिश्चित कर देती है कि मध्यम वर्ग या गरीब तबके का कोई व्यक्ति चुनाव नहीं लड़ सके। उन्होंने भरोसा जताया कि राजनीतिक पार्टियां धीरे-धीरे पारदर्शिता की तरफ बढ़ेंगी, इसमें पांच साल लग सकते हैं, 10 साल लग सकते हैं, मैं बहुत आशावादी हूं।