पूर्व सूचना आयुक्त श्रीधर आचार्युलु ने मंगलवार को आरोप लगाया है कि सरकार ही याचिकाएं दायर कराकर सीआईसी पर कानूनी दबाव बना रही है और इससे सीआईसी के अस्तिस्व पर ही सवाल खड़ा हो गया है। उन्होंने राष्ट्रपति को पत्र लिखकर मामले में हस्तक्षेप की मांग की है।
राष्ट्रपति को लिखे पत्र में उन्होंने लिखा है कि इस तरह की याचिकाएं दायर की जा रही हैं, जिनका मकसद तय रूप से जीतना नहीं है, बल्कि संगठन या व्यक्ति पर दबाव बनाने का है ताकि उसके खिलाफ सार्वजनिक तौर पर बोलने से तौबा कर ले। उनका कहना है कि याचिकाओं के जरिए सीआईसी और उन नागरिकों को निशाना बनाया जा रहा है जो आरटीआई के तहत सूचना मांगते हैं।
'आखिर कौन करे अस्तित्व की रक्षा'
इस बारे में आचार्युलु ने भारतीय रिजर्व बैंक से जुड़े दो आदेशों का हवाला भी दिया है। आचार्युलु ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना करने के लिए रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल को कारण बताओ नोटिस जारी किया था। सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व सूचना आयुक्त शैलेष गांधी के उस आदेश को बरकरार रखा था जिसमें उन्होंने जानबूझकर कर्ज नहीं चुकाने वालों के नाम उजागर करने को कहा था।
रिजर्व बैंक ने केंद्रीय सूचना आयोग के एक अन्य आदेश को भी चार जुलाई को चुनौती दी थी, जिसमें स्थानीय गैर सरकारी संगठनों के विदेशी दानदाताओं की जानकारी उजागर नहीं करने पर सूचना आयुक्त सुधीर भार्गव ने रिजर्व बैंक के सीपीआइओ को कारण बताओ नोटिस जारी किया था। आचार्युलु ने कहा है कि सूचना आयुक्त के तौर पर जब मैं सरकार का हिस्सा हूं और सरकार ही खुद मेरे खिलाफ लड़ती है तो फिर रक्षा कौन करेगा?