केन्द्र सरकार के तीन कृषि सुधार कानूनों को रद्द कराने की मांग को लेकर दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलनरत हजारों किसानों ने शनिवार सुबह केजीपी-केएमपी एक्सप्रेस-वे पर जाम लगा दिया जबकि सरकार ने कोरोना संकट को देखते हुए किसान संगठनों से आंदोलन वापस लेने की पेशकश की है।
कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कोरोना संकट को देखते हुए किसान संगठनों से आंदोलन वापस लेने का शनिवार को अनुरोध करते हुए कहा कि सरकार उनके साथ बातचीत के लिए तैयार है। उन्होंने ट्वीट कर कहा, “किसानों के मन में असंतोष नहीं है। जो किसान संगठन इन बिलों के विरोध में हैं, उनसे सरकार बातचीत के लिए तैयार है। मैं किसान संगठनों से आग्रह करूंगा कि वे अपना आंदोलन स्थगित करें, अगर वे बातचीत के लिए आएंगे तो सरकार उनसे बातचीत के लिए तैयार है।”
उल्लेखनीय है कि किसान संगठन कृषि सुधार कानूनों को वापस लेने की मांग को लेकर लंबे समय से राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन कर रहे हैं। आज से उन्होंने अपना आंदोलन तेज करने का निर्णय किया है।
श्री तोमर ने कहा कि जब किसान संगठनों से बातचीत चल रही थी, उस समय भी उन्होंने कोविड संकट को लेकर आंदोलन में शामिल बुजुर्ग और बच्चों को घर भेजे जाने का अनुरोध किया था। आज कोविड का दूसरा दौर है। पूरा देश इसको लेकर चिंतित है और कोरोना प्रोटोकॉल के पालन पर जोर दिया जा रहा है। किसानों की जिंदगी उनके लिए महत्वपूर्ण है। ऐसे में किसानों को आंदोलन स्थगित कर सरकार के साथ बातचीत कर समस्या का समाधान करना
चाहिए।
उधर, बड़ी संख्या में आंदोलनकारी किसान दोनों एक्सप्रेस-वे के जीरो प्वॉइंट के अलावा दोनों टोल प्लाजा पर दिन भर बैठे रहे। पूर्व निर्धारित घोषणा के अनुसार सुबह करीब 7:30 बजे हजारों किसान केएमपी और केजीपी के जीरो पॉइंट पर एकत्रित हो गए। सैकड़ों किसान वहीं धरने पर बैठ गए बाकी हजारों की संख्या में किसान केएमपी और केजीपी के करीब तीन किलोमीटर दूर स्थित टोल प्लाजा पर पहुंच गए। किसानों ने करीब 250 ट्रैक्टर खड़े कर एक्सप्रेस-वे के बीचों-बीच खड़े कर जाम लगा दिया।
इन किसानों के बीच 26 जनवरी को लाल किले पर तिरंगा फहराने के मामले में वांछित एक लाख रुपए का इनामी लक्खा सिधाना भी मौजूद रहा। किसानों ने टोल प्लाजा पर पहुंचकर केंद्र सरकार की नीतियों के खिलाफ जमकर नारेबाजी की। प्रदर्शनकारियों का कहना था कि वह तीन कानूनों को वापस करा कर ही अपने घरों को लौटेंगे, इससे कम उन्हें कुछ भी मंजूर नहीं।
दिनभर अलग-अलग जत्थों में किसान धरना स्थल पर नारेबाजी करते हुए पहुंचते रहे। मुख्य मंच से मोर्चा के नेता लगातार शांति बनाए रखने और किसी प्रकार के उपद्रव में शामिल न होने की नसीहत देते रहे। केजीपी-केएमपी पर जाम की सूचना पहले से ही मिलने के कारण बहुत से वाहन चालकों ने अपना मार्ग बदल लिया, लेकिन जो थोड़े बहुत वाहन यहां आए, उन्हें वापस लौटना पड़ा। जाम का सबसे ज्यादा असर राजमार्ग संख्या-44 पर रहा, जहां गन्नौर से लेकर मुरथल और बहालगढ़ से बीसवां मील तक लंबा जाम लगा रहा। जाम का मुख्य कारण भारी वाहनों को पीछे ही न रोक पाना था। पुलिस भारी वाहनों को रोक पाने में नाकाम रही। पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार किसानों का यह जाम रविवार सुबह आठ बजे तक चलेगा।
पुलिस की 13 रिजर्व कंपनियाँ हालाँकि सुरक्षा के लिए तैनात की गईं थी। इनकी कमान छह डीएसपी के हाथ रही। इसके लिए 14 जगह नाकेबंदी की गई थी और राहगीरों की सुविधा के लिए मार्गों में परिवर्तन किया गया था फिर भी अनेक वाहन चालक संपर्क मार्गों से राजमार्ग पर पहुंच कर जाम में फंस गए।
संयुक्त मोर्चा के सदस्य डॉ दर्शनपाल, अभिमन्यु कोहाड़, गुरनाम सिंह चढूनी एवं धर्मेंद्र मलिक ने आदि किसान नेताओं ने कहा कि केंद्र सरकार किसानों को हल्के में ले रही है मगर अब और अधिक बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। सरकार पर दबाव बनाने के लिए आंदोलन को और तेज किया जाएगा। अगले कुछ दिनों में कटाई के कार्य से निवृत्त होने के बाद हजारों की संख्या में किसान दिल्ली की सीमाओं पर पहुंचेंगे।