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तो इसलिए लोगों के दिलों में बसते थे समाजसेवी बाबा आमटे

कुष्ठ रोगियों के मसीहा कहे जाने वाले बाबा आमटे यानी डॉ॰ मुरलीधर देवीदास आमटे की आज जयंती है। इस अवसर पर...
तो इसलिए लोगों के दिलों में बसते थे समाजसेवी बाबा आमटे

कुष्ठ रोगियों के मसीहा कहे जाने वाले बाबा आमटे यानी डॉ॰ मुरलीधर देवीदास आमटे की आज जयंती है। इस अवसर पर गूगल ने डूडल बनाकर उन्हें समर्पित किया है। कुष्ठ रोगियों के सशक्तीकरण में उनका योगदान काफी उल्लेखनीय है लेकिन वे सामाजिक कार्यकर्ता के साथ-साथ महान स्वतंत्रता सेनानी भी थी। उन्होंने पर्यावरण संरक्षण आंदोलन में भी अहम भूमिका निभाई।

वकालत छोड़ भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हुए

आमटे ने अपना जीवन समाज के दबे-कुचले तबकों को समर्पित कर दिया। वह महात्मा गांधी की बातों और उनके दर्शन से काफी प्रभावित हुए और वकालत के अपने सफल करियर को छोड़कर भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो गए। 94 साल की आयु में 9 फरवरी 2008 को आमटे ने अंतिम सांस ली। वे भारत के प्रमुख व सम्मानित समाजसेवी थे।

एक संपन्न परिवार में हुआ था उनका जन्म

महाराष्ट्र के वर्धा जिले के हिंगनघाट शहर में 26 दिसंबर 1914 को धनी परिवार में जन्मे बाबा आमटे के पिता का नाम देविदास आमटे और उनकी माता का नाम लक्ष्मीबाई आमटे था। उनका परिवार एक संपन्न परिवार था। उनके पिता ब्रिटिश गवर्नमेंट ऑफिसर थे, उनके ऊपर डिस्ट्रिक्ट एडमिनिस्ट्रेशन और रेवेन्यु कलेक्शन की जिम्मेदारी थी।

बचपन में ही मुरलीधर को अपना उपनाम बाबा दिया गया था। बताया जाता है कि उन्हें बाबा इसलिए नही कहा जाता था कि वे कोई संत या महात्मा थे, बल्कि उन्हें बाबा इसलिए लोग पुकारते थे क्योंकि उनके माता-पिता ही बचपन में उन्हें इस नाम से संबोधित करते थे।

कानून विषय पर आमटे ने वर्धा में खास अध्‍यन कर रखा था। वे भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों के साथ जल्द ही शामिल हो गए थे। उन्होंने भारत को ब्रिटिश राज से मुक्ति दिलाने में अहम भूमिका अदा की। भारतीय स्वतंत्रता नेताओं के लिए वे बचावपक्ष वकील की भूमिका में नजर आते थे। 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में जिन भारतीय नेताओं को ब्रिटिश सरकार ने कारावास में डाला था उन सभी नेताओं का बचाव बाबा आमटे ने किया था।

आमटे को दिया गया ‘अभय साधक’ का नाम

आमटे की एक बात सभी के जेहन में याद आती है कि उन्होंने ब्रिटिश सैनिकों से एक लड़की की जान बचाई जिसके बाद गांधी जी उनके मुरीद हो गए। इस घटना के बाद गांधी जी आमटे को ‘अभय साधक’ का नाम दिया।

उन दिनों कुष्ट रूप समाज में तेजी से फैल रहा था और बहुत से लोग इस बीमारी की चपेट में आ रहे थे। लोगों में ऐसी गलतफहमी घर कर गई थी कि यह बीमारी जानलेवा है। ऐसे वक्त में आमटे ने लोगों की इस गलतफहमी को दूर किया और कुष्ठ रोग से प्रभावित मरीज के इलाज की उन्होंने काफी कोशिशे भी की।

आमटे ने गरीबो की सेवा और उनके सशक्तिकरण और उनके इलाज के लिए भारत के महाराष्ट्र में तीन आश्रम की स्थापना करने का भी काम किया।

इन सामाजिक कार्यों में न्योछावर किया अपना जीवन

15 अगस्त 1949 की बात करें तो इस दिन उन्होंने आनंदवन में एक पेड़ के नीचे अस्पताल की शुरुआत भी की। उन्होंने अपने जीवन को बहुत से सामाजिक कार्यो में न्योछावर किया, इनमें मुख्य रूप से लोगों में सामाजिक एकता की भावना को जागृत करना, जानवरों का शिकार करने से लोगों को रोकना और नर्मदा बचाओ आन्दोलन शामिल है।

1985 में बाबा आमटे ने कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत जोड़ो आंदोलन भी चलाया था। इस आंदोलन को चलाने के पीछे उनका मकसद देश में एकता की भावना को बढ़ावा देना और पर्यावरण के प्रति लोगों का जागरुक करना था।

इस अवॉर्ड से हो चुके हैं सम्मानित

-    1971 में आमटे को पद्म श्री अवार्ड से सम्मानित किया गया।

-    अमेरिका का डेमियन डट्टन पुरस्कार 1983 में दिया गया। इसे कुष्ठ रोग के क्षेत्र में कार्य के लिए दिया जाने वाल सर्वोच्च सम्मान माना जाता है।

-    एशिया का नोबल पुरस्कार कहे जाने वाले रेमन मैगसेसे (फिलीपीन) से 1985 में अलंकृत किया गया।

-    मानवता के लिए किए गए अतुलनीय योगदान के लिए 1988 में घनश्यामदास बिड़ला अंतरराष्ट्रीय सम्मान दिया गया।

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