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हरियाणा ने साक्षी को 2.5 करोड़ का इनाम और सरकारी नौकरी देने की घोषणा की

रियो ओलिंपिक में कांस्य पदक जीतने वाली भारत की महिला पहलवान साक्षी मलिक को हरियाणा सरकार ने 2.5 करोड़ रुपए और सरकारी नौकरी देने का ऐलान किया है। हरियाणा की साक्षी ने किर्गिस्तान की पहलवान एसुलू तिनिवेकोवा को 8-5 से हराकर इतिहास रच दिया। साक्षी इसके साथ ही ओलिंपिक में पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला पहलवान बन गई। उन्होंने कांस्य पदक उसी तरह जीता जैसे सुशील कुमार ने 2008 में पेइंचिंग ओलिंपिक में जीता था। 2012 लंदन ओलिंपिक में योगेश्वर दत्त ने भी रेपशाज के जरिए कांस्य अपने नाम किया था।
हरियाणा ने साक्षी को 2.5 करोड़ का इनाम और सरकारी नौकरी देने की घोषणा की

भारत के लिए ब्रॉन्ज मेडल जीतने वाली चौथी महिला खिलाड़ी बन गई हैं। भारत की महिला वेटलिफ्टर कर्णम मल्लेश्वरी ने 2000 के सिडनी ओलिंपिक में भारत्तोलन में ब्रॉन्ज मेडल जीता था। वहीं बैडमिंटन स्टार साइना नेहवाल ने 2012 के पिछले लंदन ओलिंपिक में कांस्य पदक जीता था। बॉक्सर मैरी कॉम ने भी 2012 ओलिंपिक में मेडल अपने नाम किया था।

वे ओलंपिक इतिहास में कुश्ती में पदक जीतने वाली चौथी भारतीय खिलाड़ी बन गई है। ए डी जाधव ने 1952 के ओलिंपिक में ब्रॉन्ज मेडल जीता था। सुशील ने 2008 के पेइचिंग में ब्रॉन्ज मेडल और 2012 के लंदन ओलिंपिक में रजत पदक जीता था। योगश्वर दत्त ने लंदन में ही ब्रॉन्ज मेडल हासिल किया था।

साक्षी के पिता सुखबीर मलिक दिल्ली ट्रांसपोर्ट कारपोरेशन में कार्यरत हैं। उनकी मां सुदेश मलिक आंगनवाड़ी में सुपरवाइजर हैं। साक्षी को 12 साल की उम्र से ही कुश्ती में दिलचस्पी थी। 2004 में उन्होंने ईश्वर दहिया का अखाड़ा ज्वाइन किया।

साक्षी ने अपने दादा से कुश्ती लड़ने की प्रेरणा ली, जो पहलवान थे। पिता ने कभी कुश्ती नहीं लड़ी, लेकिन बेटी की रुचि देखकर उसे कुश्ती सिखाया। सुखवीर मलिक ने बताया, "जब साक्षी पैदा हुई तो मेरी पत्नी की नौकरी लग गई। तब हमने साक्षी को उसके दादा दादी के पास रहने भेज दिया। सात साल की होने तक वह वहीं रही। जब गांव के लोग मेरे पिता जी से मिलने आते थे तो पहलवान जी राम-राम कहते थे। तभी से उसने ठान लिया कि वो दादा की तरह पहलवान बनेगी।"

साक्षी की मां सुदेश मलिक रोहतक स्थित आंगनवाड़ी में सुपरवाइज़र हैं। उनके अनुसार, "कई लोग बेटी की पहलवानी की ट्रेनिंग के बारे में पूछते थे। हम एक ही सवाल करते थे, जब लड़कियां डॉक्टर, इंजीनियर, पायलट लड़कियां हो सकती हैं तो फिर पहलवान क्यों नहीं? साक्षी कई वर्षों से एक रूटीन लाइफ जीती आ रहीं हैं। सुबह चार बजे उठना, फिर प्रैक्टिस करना और नौ बजे वापस आना, थोड़ी देर सोना, खाना-पीना और फिर शाम को वापस प्रैक्टिस पर जाना।

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