ये सहायक राजौरी, जम्मू और पुंछ जैसे इलाकों में भारतीय सेना की मदद करते हैं और इनकी संख्या करीब 12,000 है।
देश की सबसे बड़ी अदालत ने केंद्र से यह भी कहा कि इनको स्थायी करते समय इन सहायकों के बड़े हिस्से को ध्यान में रखा जाए ताकि अधिक से अधिक लोगों को कार्यकाल के फायदे मिल सकें जिन्होंने न्यूनतम सेवा की अवधि पूरी की है।
प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति टी एस ठाकुर और न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर की पीठ ने यह निर्देश जारी किया और यह भी कहा कि ये सहायक समाज के बहुत गरीब तबके से आते हैं और उनके पास शायद शैक्षणिक योग्यता नहीं हो लेकिन वे सेना को महत्वपूर्ण सहयोग प्रदान करते हैं तथा सीमावर्ती इलाकों में अभियानों का अभिन्न हिस्सा होते हैं।
न्यायालय ने आदेश दिया कि इन सहायकों के लिए योजना को तीन महीने में अंतिम रूप दिया जाए तथा उसने 29 सहायकों की ओर से दायर याचिकाओं का निस्तारण भी कर दिया। भाषा एजेंसी