झारखण्ड के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन को जनगणना के कॉलम में सरना आधिवासी धर्म कोड को शामिल करने और डीवीसी के बकाया बिजली का पैसा राज्य के खजाने से काट लिया जाना गहरे साल रहा है। शुक्रवार को नीति आयोग की गवर्निंग काउंसिल की वर्चुअल बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समक्ष हेमन्त सोरेन ने दोनों मसलों को उठाया। मुद्दे और भी उठाये।
हेमन्त सोरेन ने कहा कि अपनी पहचान के लिए जनगणना में अपनी आदिवासी धर्म कोड को शामिल करने की मांग लंबे समय से की जा रही है झारखण्ड विधानसभा ने भी सरना आदिवासी धर्म कोड से संबंधित प्रस्ताव पास कर भेजा है। उम्मीद करता हूं कि भारत सरकार इस पर सहानुभूति पूर्वक विचार करेगी। नीति आयोग की बैठक में विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्री व केंद्रीय मंत्री मौजूद थे। हेमन्त सोरेन ने कहा कि केंद्र सरकार ने झारखण्ड को दी जाने वाली 1750 करोड़ की बजट राशि में 1200 करोड़ रुपये काट लिया। इससे राज्य को करोड़ों का नुकसान उठाना पड़ रहा है। साथ ही कोरोना काल में डीवीसी द्वारा राज्य के खाते से 2131 करोड़ रुपये की कटौती कर ली गई जबकि झारखण्ड के लिए इस मुश्किल दौर में यह फंड जरूरी था। यह श्रमिक प्रधान राज्य है।
यूनिवर्सल पेंशन लागू हो
मुख्यमंत्री ने कहा कि भ्रमण के दौरान बुजुर्गों की शिकायत रहती है कि उन्हें पेशन नहीं मिल रही जबकि अधिकारियों का कहना रहता है कि लक्ष्य पूरा हो गया है। उन्होंने यूनिवर्सल पेंशन देकर तमाम बुजुर्गों को पेंशन की वकालत की। यह भी कहा कि 2007 के बाद से पेंशन की राशि में वृद्धि नहीं की गई है हालांकि राज्य सरकार ने अपने खाते से बढ़ाया है। उन्होंने कहा कि लाह और रेशम की खेती को राज्य सरकार उद्योग का दर्जा देने की तैयारी कर रही है। ग्रामीणों के आर्थिक संसाधन को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है। यह भी कहा कि केंद्र ने मनरेगा के तहत मजदूरी दर 202 रुपये अंकित किया है जो अन्य राज्यों से कम है। इसे बढ़ाने की जरूरत है।
पार्टनरशिप में हो खनन हो, लचीला हो फॉरेस्ट क्लीयरेंस
झारखण्ड का पक्ष रखते हुए हेमन्त सोरेन ने कहा कि यह खनिज प्रधान प्रदेश है मगर सूबे के लिए यह लाभदायक साबित नहीं हो रहा है। खनन रॉयल्टी, डिस्ट्रिक्ट मिनरल्स फाउंडेशन ट्रस्ट फंड के अतिरिक्त केंद्र सरकार पार्टिनरशिप की दिशा में विचार करे। इससे यहां के लोगों को आगे बढ़ने में मदद मिलेगी। यहां के लोगों को सिर्फ आर्थिक पीड़ा ही नहीं मानसिक रूप से भी विस्थापन का दंश झेलना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि प्रदेश का बड़ा हिस्सा जंगल-झाड़ से घिरा है। उद्योग के लिए फॉरेस्ट क्लीयरेंस लेने में परेशानी होती है। अधिग्रहित जमीन के एवज में समतुल्य जमीन उपलब्ध कराने में परेशानी होती है। इसे देखते हुए प्रक्रिया को और लचीला बनाया जाये ताकि झारखण्ड में उद्योग लगाने में सहूलियत हो।