केरल में 23 वर्षीय दलित युवक केविन जोसेफ की एक रोमन कैथोलिक लड़की से शादी को लेकर हुई हत्या ने भारत के दक्षिणी राज्यों में भी ऑनर किलिंग की बढ़ती घटनाओं को उजागर किया है। अभी तक उत्तरी राज्यों में ही इस तरह के मामले सामने आ रहे थे, मगर अब दक्षिण भारतीय राज्य तमिलनाडु और दोनों तेलुगू राज्यों- आंध्र प्रदेश व तेलंगाना में हाल के दिनों में ऐसी कई घटनाएं सामने आई हैं, जो बेहद चिंताजनक हैं।
13 मार्च, 2017 को एक सशस्त्र गिरोह ने दलित युवक शंकर को न सिर्फ बेरहमी से पीटा, बल्कि उसकी पत्नी थेवर (ओबीसी) समुदाय की कौसल्या के साथ तिरुपुर जिले के उडुमलपेट के एक शॉपिंग कॉम्प्लेक्स के बाहर चाकू की नोक पर छेड़छाड़ भी की। इसमें शंकर की मृत्यु हो गई थी और कौसल्या को गंभीर चोटें आई थीं। इस प्रकरण में अदालत ने दिसंबर, 2017 में दिए अपने फैसले में कौसल्या के पिता सहित 6 लोगों को मौत की सजा सुनाई। शंकर की हत्या को दक्षिण भारत में ऑनर किलिंग के रूप में पहली हत्या माना गया। टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, जुलाई, 2013 से तमिलनाडु में 81 हत्याएं ऑनर किलिंग के तहत की गईं और इन पीड़ितों में से 80 फीसदी महिलाएं हैं।
तेलंगाना में ऑनर किलिंग के मामले ससुराल वालों द्वारा भोंगिर में मारे गए पेडापल्ली के नरेश और मधुकर की हत्याओं तक ही सीमित नहीं हैं। पिछले दो वर्षों में तेलंगाना और आंध्र प्रदेश राज्यों में सम्मान के लिए 17 हत्याएं की गईं। ज्यादातर हत्याएं तब हुईं, जब पीड़ितों में अंतरजातीय विवाह या अंतरजातीय संबंध था। हालांकि ‘ऑनर किलिंग’ जैसी हत्याएं रोकने के लिए प्रभावी कानून लाने की सिफारिश की गई थी, लेकिन तब भी केंद्र द्वारा कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले में कहा भी गया है कि ‘ऐसी हत्याओं को रोकने के लिए कठोर कार्रवाई की जानी चाहिए।’ जब भी ऑनर किलिंग के तहत कोई हत्या अथवा गैरइरादतन हत्या (299) होती है, तो पुलिस उसे आईपीसी की धारा 302 (हत्या) के तहत दर्ज करती है।
राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़े बोलते हैं कि 2014 से 2015 तक भारत में ‘ऑनर किलिंग’ के मामलों में लगभग 796 फीसदी की वृद्धि हुई। 2014 में इस मामले में 28 हत्याओं की सूचना मिली, वहीं 2015 में गुजरात में यह तादाद 251 तक पहुंच गई। जहां इस तरह के मामले गुजरात, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में सबसे अधिक दर्ज किए गए हैं, वहीं ‘ऑनर किलिंग’ के तहत हुई हत्याओं के मामले में तेलंगाना और आंध्र प्रदेश चौथे नंबर पर हैं। ऑनर किलिंग (लता सिंह बनाम उत्तर प्रदेश) मामले में 2006 के फैसले पर 29 मई, 2017 को डेक्कन क्रॉनिकल में प्रकाशित एक समाचार के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट ने इसे ‘बर्बर’ बताया था और इसकी जघन्यता की ओर इशारा करते हुए अपने फैसले में कहा था, ‘ऐसी हत्याओं में कुछ भी सम्मानजनक नहीं है और वास्तव में यह क्रूर, सामंती विचारधारा वाले व्यक्तियों द्वारा किए गए हत्या के बर्बर कृत्यों के अलावा कुछ नहीं है, जो सख्त सजा के पात्र हैं।’
ऊपरी तौर पर दक्षिण भारतीय राज्य बेहतर शैक्षणिक और स्वास्थ्य सेवाओं को देखते हुए बहुत प्रगतिशील मालूम होते हैं, लेकिन वास्तव में इस समाज में भी रूढ़िवादी जड़ें गहरे तक धंसी हुई हैं। ये राज्य भी सामंतवाद, जातिवाद, देवदासी और दहेज प्रथाओं जैसी सामाजिक बुराइयों से गहरे घिरे हुए हैं। त्रासदी यह है कि केरल की कई महिलाएं खाड़ी देशों और उत्तर भारतीय राज्यों में इसलिए काम करने जाती हैं, ताकि वे काम करके अपने दहेज के लिए धन जुटा सकें। अगर इसे सशक्तिकरण का एक रूप कहा जाए, तो यह एक अजीब तरह का सशक्तिकरण ही कहलाएगा।
तमिलनाडु, कम्मास और रेड्डी में दलितों के साथ थेवर, वानियार और गौंडर्स का जातीय टकराव किल्वेनमनी, करमचेडु और सुंडुरू नरसंहारों से जाहिर है। दलितों की शिक्षा और सामाजिक गतिशीलता ने उनको गुलाम बनाए रखने वाली सामाजिक संरचना को चुनौती दी है और उन्हें अधिक मुखर, महत्वाकांक्षी और दृढ़ बनाया है। इस तरह उन्होंने सवर्णों और उनके जाति वर्चस्व को परेशान कर दिया है।
केविन जोसेफ की हत्या हमें ईसाईयों के बीच जाति भेदभाव की बदसूरत वास्तविकता तक पहुंचाती है। इस्लाम और ईसाई धर्मों को समतावादी माना जाता है, जहां हर एक को समानता के साथ जीने की आजादी है। दुर्भाग्य से दक्षिण एशिया और विशेष रूप से भारत में, महिला उत्पीड़न और पितृसत्ता के अवशेष उन लोगों में बने रह गए, जिन्होंने इस्लाम और ईसाई में धर्म परिवर्तन किया था। अलग जाति और उप-जाति समूहों के लिए अलग-अलग चर्च हैं, यहां तक कि उनके मृतकों को अलग-अलग कब्रिस्तानों में दफनाया जाता है।
केरल में, सीरियाई ईसाई मानते हैं कि उनके पूर्वज नंबूदरी जाति के ब्राह्मणों से संबंधित थे, जिनका जीसस के शिष्यों में से एक सेंट थॉमस द्वारा धर्म परिवर्तन किया गया था। केविन की कथित हत्या मास्टरमाइंड सीरियाई ईसाईयों के इस चर्च से संबंधित थी। केविन की हत्या में जाति के साथ वर्ण भी एक कारण था। एंडोगामी जाति के लोगों का अपनी जाति के भीतर शादी करना न केवल दक्षिण भारतीय हिंदुओं, बल्कि ईसाईयों की भी एक विशेषता है। इन जातियों में भी महिलाओं को अपनी जाति और परिवार में सम्मान के वाहक के रूप में देखा जाता है, इसलिए किसी भी अपराध के लिए उन्हें दंडित करना जरूरी समझा जाता है। उच्च मानव विकास सूचकांक (एचडीआई) वाले राज्यों- केरल, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश व तेलंगाना जैसे तेलुगु राज्यों में हुई ऐसी घटनाएं बताती हैं कि अच्छी शिक्षा और बेहतर स्वास्थ्य के आंकड़े भी महिलाओं को पितृसत्तात्मक संरचनाओं से मुक्त कराने में सफल नहीं हो सके हैं।