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कोविंद के जरिए भाजपा ने खेला ऐसा कार्ड, मायावती भी विरोध नहीं कर पाईं

राष्ट्रपति चुनाव में दलित समाज से जुड़े बिहार के राज्यपाल रामनाथ कोविंद को आगे कर भाजपा ने एक तीर से कई निशाने साधे हैं। दलित समुदाय से ताल्लुक रखने वाले कोविंद की उम्मीदवारी के मुद्देे पर विपक्ष भी उलझन में पड़ा सकता है। यहां तक कि बसपा प्रमुख मायावती भी सीधे तौर पर उनका विरोध नहीं कर पा रही हैं।
कोविंद के जरिए भाजपा ने खेला ऐसा कार्ड, मायावती भी विरोध नहीं कर पाईं

भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने सोमवार को घोषणा की कि एनडीए की तरफ से राष्ट्रपति उम्मीदवार बिहार के राज्यपाल रामनाथ कोविंद होंगे। इस तरह उन्होंने विपक्ष के सामने एक बड़ी चुनौती पेश कर दी है। बसपा प्रमुख मायावती का कहना है कि रामनाथ कोविंद दलित समुदाय से संबंध रखते हैं इसलिए उनके प्रति पार्टी का स्टैंड नकारात्मक नहीं हो सकता अर्थात सकारात्मक ही रहेगा। बशर्ते राष्ट्रपति पद के लिए विपक्ष की ओर से दलित वर्ग का कोई उनके काबिल और लाेेकप्रिय उम्मीदवार मैदान में नहीं उतरता है।

मायावती ने कहा है कि कोविंद शुरू से ही भाजपा और संघ से जुड़े रहे हैं और उनकी राजनैतिक पृष्ठभूमि से वह कतई सहमत नहीं हैं। फिर भी वह कोविंद का सीधे तौर पर विरोध भी नहीं कर पा रही हैं। मायावती का कहना है कि बेहतर होगा अगर एनडीए राष्ट्रपति पद के लिए दलित वर्ग से किसी गैर-राजनैतिक व्यक्ति को आगे करता।  

विपक्ष को चुनौती

सत्तापक्ष की तरफ से राष्ट्रपति उम्मीदवार का नाम घोषित करने में देरी को लेकर विपक्ष काफी आक्रामक रुख अपनाए हुए था। सोनिया गांधी की अगुआई में 17 विपक्षी दल साझा उम्मीदवार खड़ा करने को लेकर पहले ही बैठक कर चुके थे, लेकिन सत्तापक्ष की तरफ से आम सहमति बनाने की किसी पहल का इंतजार कर रहे थे। सीपीएम नेता सीताराम येचुरी ने तो यहां तक कह दिया था कि अगर मंगलवार तक एनडीए अपना उम्मीदवार घोषित नहीं करता तो विपक्ष अपना उम्मीदवार तय कर देगा। लेकिन इसके एक दिन पहले ही भाजपा ने कोरी समुदाय के गैर-विवादास्पद कोविंद के नाम ऐलान करके गेंद विपक्ष के पाले में डाल दी है। भाजपा से जुड़े रहे कोविंद की छवि भी आक्रामक हिंदू नेता की कभी नहीं रही है। इन दो वजहों से विपक्ष के लिए कोविंद का विरोध करना आसान नहीं होगा।    

दलित विरोध का जवाब

हाल के दिनों में रोहित वेमुला कांड, गुजरात के ऊना और सहारनपुर समेत दलित उत्पीड़न की कई अन्य घटनाओं के चलते भाजपा को विपक्ष के दलित विरोधी होने के आरोप झेलने पड़ रहे थे। लेकिन देश के सवोऱ्च्च संवैधानिक पद पर दलित चेहरा उतरने से ये आरोप कुछ कमजोर पड़ सकते हैं। यहां तक कि भाजपा पर निरंतर दलित विरोधी होने के आरोप लगाने वाली बसपा नेता मायावती को भी कहना पड़ा कि कोविंद के लिए पार्टी का रुख नकारात्मक नहीं, सकारात्मक है, बशर्ते विपक्ष को बड़ा दलित चेहरा मुकाबले में न उतार दे।

मिशन 2019 की रणनीति

भाजपा दरअसल कोविंद को उतारकर मिशन 2019 को साधने की कोशिश में है। कोविंद दलित समुदाय से ताल्लुक रखने के साथ-साथ उत्तर प्रदेश के भी हैं। 2019 लोकसभा चुनावों के लिए 80 सीटों वाले सबसे बड़े प्रदेश में भाजपा दलितों की नाराजगी नहीं झेल सकती। इसलिए दलित ही नहीं बल्कि गैर-जाटव दलित पर भाजपा फोकस कर रही है। जाटव समाज अगर मायावती से अलग नहीं जाता है तो गैर-जाटव दलितों को भाजपा अपने पाले में एकजुट करने पर लगातार फोकस कर रही है।

उत्तर प्रदेश ही नहीं, इसका असर पूरे देश और खासकर दक्षिण के राज्यों में भी सकारात्मक जा सकता है। खासकर तमिलनाडु में द्रविड़ राजनीति में दलितों की बड़ी हिस्सेदारी है। इसलिए विपक्ष के लिए इस चुनौती का काट आसान नहीं हो सकती है।

अब देखना होगा राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए के दलित कार्ड का विपक्ष किस तरह जवाब देता है, या फिर सत्तापक्ष के साथ ही हां में हां मिलाता है। उधर पीएम मोदी ने बिहार के राज्यपाल रामनाथ कोविंद को एनडीए का राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाए जाने के बाद कई ट्ववीट किए। पीएम ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कोविंद गरीबों और उपेक्षित वर्गों के लिए आवाज उठाते रहेंगे।




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