विश्व किडनी दिवस के मौके पर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) ने किडनी डिजीज प्रिवेंशन प्रोजेक्ट शुरू किया जिसका मकसद देश में तेजी से फैल रही क्रोनिक किडनी डिजीज (सीकेडी) की महामारी पर लगाम लगाना है।
भारत में सीकेडी की जानकारी देते हुए आईएमए के महासचिव डा. आर एन टंडन ने बताया. सीकेडी के दो तिहाई मामले डायबिटीज और हाइपरटेंशन के कारण होते हैं। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के हालिया आंकड़े बताते हैं कि शहरी भारत की युवा आबादी में डायबिटीज और हाइपरटेंशन दोनों की मौजूदगी 20 फीसदी की दर से बढ़ी है। भारत में विभिन्न प्रकार की लाइफस्टाइल बीमारियों के बढ़ते मामलों के साथ-साथ किडनी रोग के मामले में भी अहम रही है। पिछले एक दशक में किडनी रोग के करीब मामले दोगुना हो चुके हैं और आगे भी इसके तेजी से बढ़ने की आशंका है।
आईएमए के डॉ विनय अग्रवाल ने बताया कि आईएमए और इसके डाक्टरों ने देश में सीकेडी के कारणों से निपटने के लिए राष्ट्रव्यापी बचाव और जागरूकता कार्यक्रम शुरू करने का संकल्प लिया है। डा अग्रवाल ने कहा कि सीकेडी के खतरा महिलाओं में भी उतना ही रहता है जितना पुरूषों में लेकिन महिलाओं की डायलेसिस कराने की संख्या कम ही रही है।
आईएमए किडनी डिजीज प्रिवेंशन प्रोजेक्ट की संयोजक और नेफ्रोलॉजिस्ट डा गरिमा अग्रवाल ने कहा “हमारे देश में हर साल गर्भधारण से जुड़े किडनी रोग मातृत्व मृत्यु दर का एक बड़ा कारण माना जाता है। भारत में प्रति दस लाख लोगों (पीएमपी) में से लगभग आठ सौ लोग सीकेडी के शिकार हैं जबकि प्रति पीएमपी एडवांस्ड किडनी रोग से ग्रसित 230 लोगों को डायलिसिस या किडनी ट्रांसप्लांट के रूप में किसी न किसी तरीके से किडनी रिप्लेसमेंट थेरापी की जरूरत पड़ती है। विशेषज्ञों और इलाज तक सीमित पहुंच की समस्या से निपटने केलिए बचावकारी उपायों से किडनी रोग के मामलों को कम किया जा सकता है। साफ है कि किडनी रोग और इसके एडवांस्ड स्टेज यानी अंतिम चरण में पहुंच चुके रोग का इलाज काफी महंगा होता है। लिहाजा जरूरी है कि हत्वपूर्ण है कि क्रोनिक किडनी रोग से बचाव को ही चिकित्सा जगत, भारत सरकार और आम लोगों के बीच लक्ष्य बनाया जाए।