सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव में अपराधीकरण पर आज अहम फैसला देते हुए आदेश दिया है कि राजनीतिक दल चयन के 48 घंटों के भीतर अपने उम्मीदवारों के आपराधिक इतिहास को जनता को सूचित करें। साथ ही दलों को चुनाव के लिए चयनित उम्मीदवारों का आपराधिक इतिहास प्रकाशित करना होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने इस संबंध में अपने 13 फरवरी, 2020 के फैसले को संशोधित किया। दरअसल, फरवरी 2020 के फैसले के पैराग्राफ 4.4 में, सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि उम्मीदवार के चयन के 48 घंटे के भीतर या नामांकन दाखिल करने की पहली तारीख से कम से कम दो सप्ताह पहले, जो भी पहले हो, उसका आपराधिक इतिहास प्रकाशित किया जाएगा। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि उसने उक्त फैसले के पैरा 4.4 में सुधार किया है और चयन को 48 घंटे के भीतर इसे प्रकाशित किया जाएगा इसके अलावा बेंच ने कुछ अतिरिक्त निर्देश भी पारित किए हैं।
शीर्ष अदालत के इस फैसले का उद्देश्य राजनीति में अपराधीकरण को कम करना है। जस्टिस आरएफ नरीमन और बीआर गवई की पीठ ने इस संबंध में अपने 13 फरवरी, 2020 के फैसले में निर्देश को संशोधित किया। एनडीटीवी की खबर के मुताबिक, पीठ ने कहा कि हमने पुराने फैसले के अलावा कुछ और दिेशानिर्देश जारी किए हैं। अपने उम्मीदवारों के आपराधिक इतिहास को प्रकाशित करने में विफल रहने वाले राजनीतिक दलों का चुनाव चिन्ह निलंबित हो सकता है? क्या चुनाव आयोग ऐसी राजनीतिक पार्टी का चिन्ह निलंबित कर सकता है?अपने उम्मीदवारों के आपराधिक इतिहास को प्रकाशित करने में विफल रहने वाले राजनीतिक दलों के खिलाफ अवमानना कार्यवाही की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला सुनाया है।
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के 13 फरवरी, 2020 के आदेश में बिहार के चुनाव में उतरे उम्मीदवारों के आपराधिक इतिहास का खुलासा करने के लिए व्यापक प्रकाशन का निर्देश दिया था। इन निर्देशों का पालन ना करने के खिलाफ दायर अवमानना याचिकाओं पर अदालत ने सुनवाई कर फैसला सुरक्षित रखा था।
सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि उम्मीदवारों के आपराधिक इतिहास का खुलासा नहीं करने वाली राष्ट्रीय पार्टी के खिलाफ उल्लंघन के मद्देनज़र पार्टी के चुनाव चिन्ह को फ्रीज या निलंबित रखा जाए। आयोग ने यह सुझाव सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन के मामले में दिया है।