देश के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने बढ़ती असहिष्णुता और मानवाधिकारों के उल्लंघन पर चिंता जताई है। उन्होंने देश की धन-दौलत के एक बड़े हिस्से पर एक प्रतिशत लोगों के कब्जे को अमीर और गरीब के बीच बढ़ती खाई के लिए भी जिम्मेदार माना है।
संस्थान राष्ट्रीय चरित्र का आईना हैं
शुक्रवार को फाउंडेशन ट्रस्ट और सेंटर फॉर रिसर्च फॉर रूरल एंड इंडस्टि्रयल डेवलपमेंट द्वारा आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन 'शांति, सद्भाव और खुशी के लिए: संक्रमण काल से बदलाव तक' के शुभारंभ पर लोगों को संबोधित करते हुए प्रणब मुखर्जी ने शासन और संस्थानों के कामकाज को लेकर मोहभंग की स्थिति की ओर ध्यान दिलाया और कहा, संस्थान राष्ट्रीय चरित्र का आईना हैं तथा भारत के लोकतंत्र को बचाने के लिए उन्हें लोगों का विश्वास दोबारा जीतना चाहिए।
मुखर्जी ने संस्थानों और राज्य के बीच शक्ति के उचित संतुलन की आवश्यकता पर दिया जोर
इस मौके पर पूर्व राष्ट्रपति ने संस्थानों और राज्य के बीच शक्ति के उचित संतुलन की आवश्यकता पर जोर दिया जैसा कि संविधान में प्रदत्त है। मुखर्जी ने कहा कि संस्थानों की विश्वसनीयता बहाली के लिए सुधार संस्थानों के भीतर से होने चाहिए।
‘संतुलन बनाए रखें संस्थान’
प्रणब मुखर्जी फाउंडेशन और सेंटर फॉर रिसर्च इन रूरल डेवलपमेंट द्वारा आयोजित कार्यक्रम में पूर्व राष्ट्रपति ने कहा, ‘हमारे संविधान ने विभिन्न संस्थानों और राज्य के बीच शक्ति का एक उचित संतुलन प्रदान किया है। यह संतुलन बनाए रखा जाना चाहिए।’
संस्थान हमारे लोकतांत्रिक ढांचे को जीवंत रखते हैं
न्यूज एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, मुखर्जी ने कहा कि पिछले 70 वर्षों में देश ने एक सफल संसदीय लोकतंत्र, एक स्वतंत्र न्यायपालिका और निर्वाचन आयोग, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक, केंद्रीय सतर्कता आयोग तथा केंद्रीय सूचना आयोग जैसे मजबूत संस्थान स्थापित किए हैं जो हमारे लोकतांत्रिक ढांचे को जीवंत रखते हैं और उन्हें संबल देते हैं।
‘देश को एक ऐसी संसद की जरूरत है...’
मुखर्जी ने कहा कि देश को एक ऐसी संसद की जरूरत है जो बहस करे, चर्चा करे और फैसले करे, न कि व्यवधान डाले। एक ऐसी न्यायपालिका की जरूरत है जो बिना विलंब के न्याय प्रदान करे। एक ऐसे नेतृत्व की जरूरत है जो राष्ट्र के प्रति समर्पित हो और उन मूल्यों की जरूरत है जो हमें एक महान सभ्यता बनाएं। उन्होंने कहा कि हमें एक ऐसे राज्य की आवश्यकता है जो लोगों में विश्वास भरे और जो हमारे समक्ष उत्पन्न चुनौतियों से निपटने की क्षमता रखता हो।
दबाव में है संस्थान, विश्वसनीयता पर उठ रहे हैं सवाल
पूर्व राष्ट्रपति ने कहा, ‘हालिया विगत में ये संस्थान गंभीर दबाव में रहे हैं और उनकी विश्वसनीयता पर सवाल उठ रहे हैं। शासन और संस्थानों की कार्यप्रणाली को लेकर व्यापक तौर पर उदासीपन तथा मोहभंग की स्थिति है। इस विश्वसनीयता को बहाल करने के लिए सुधार संस्थानों के भीतर से होने चाहिए।’
लोगों का भरोसा जीतने की जरूरत
पूर्व राष्ट्रपति ने कहा, ‘संस्थान राष्ट्रीय चरित्र का आईना हैं। हमारे लोकतंत्र को बचाने के लिए इन संस्थानों को बिना किसी विलंब के लोगों का भरोसा वापस जीतना चाहिए।’
देश में सद्भावना-सौहाद्र की स्थिति वापस लानी होगी
इस दौरान प्रणब मुखर्जी ने कहा कि शांति और सौहार्द्र तब होता है जब कोई देश बहुलवाद का सम्मान करता है, सहिष्णुता को अपनाता है और विभिन्न समुदायों के बीच सद्भावना को बढ़ावा देता है। उन्होंने कहा, ‘जिस धरती ने दुनिया को वसुधैव कुटुंबकम और सहिष्णुता, स्वीकार्यता और क्षमा के सभ्यतागत मूल्यों की अवधारणा दी, वह अब बढ़ती असहिष्णुता, रोष की अभिव्यक्ति और मानवाधिकारों के उल्लंघन को लेकर खबरों में है।’
कार्यक्रम में मुरली मनोहर जोशी भी रहे मौजूद
पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं भाजपा सांसद मुरली मनोहर जोशी ने भी इस अवसर पर संबोधन किया और शांतिपूर्ण, सौहार्द्रपूर्ण तथा सुखद समाज बनाने की दिशा में काम किए जाने पर जोर दिया।