रांची। सीपी राधाकृष्णन झारखंड के नये राज्यपाल बन गये हैं। शनिवार को उन्होंने पद एवं गोपनीयता की शपथ ली। एक दिन पहले ही यहां के राज्यपाल रमेश बैस महाराष्ट्र के लिए रवाना हुए तो राधाकृष्णन रांची पहुंचे। विरोधी दल की राज्य में सरकार होने के कारण झारखंड में राज्यपाल का पद चुनौतियों से भरा है। विवाद से जुड़े विधेयक और मुद्दे कायम हैं जो जाते जाते रमेश बैस छोड़ गये हैं, नये राज्यपाल को भी इसका सामना करना पड़ेगा। रमेश बैस और उनके पूर्व की राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू की विदाई के फर्क ने सरकार और राजभवन के बीच की तल्खी को जाहिर कर दिया। हालांकि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और उनकी सरकार ने विदाई सम्मान में कोई कमी नहीं रहने दी।
मुख्यमंत्री आवास में राज्य सरकार की ओर से राज्यपाल के सम्मान में विदाई समारोह का आयोजन किया गया जिसमें हेमंत कैबिनेट के सदस्यों के अतिरिक्त उनकी पत्नी कल्पना सोरेन भी शामिल रहीं। इतना ही नहीं मुख्यमंत्री ने सपत्नीक एयरपोर्ट जाकर भी विदा किया। विदाई भाजपा के बड़े नेताओं की ओर से भी दी गई। मगर द्रौपदी मुर्मू और रमेश बैस में फर्क दिख गया। द्रौपदी मुर्मू की विदाई के समय अपने संबोधन में हेमंत सोरेन ने उनकी खुलकर खूब तारीफ की थी। कहा था ... राज्यपाल ने बेहतर मार्गदर्शन और समन्वय से राज्य में गुड गवर्नेंस का बेहतरीन उदाहरण पेश किया। उनके काम के साथ उनके व्यवहार की भी तारीफ की थी। हालांकि टीएसी के सदस्यों के मनोनयन, आदिवासी महिला दरोगा रूपा तिर्की की मौत के बाद डीजीपी को बुलाकर निर्देश देने, कोल्हान विवि में सीनेट और सिंडिकेट सदस्यों के मनोनयन में भाजपा से जुड़े लोगों को तरजीह देने, कुलपतियों को सेवा विस्तार जैसे मसले पर सरकार के साथ उनकी ठनी रही। सत्ताधारी झामुमो आक्रामक रहा। मगर विदाई के मौके पर लगा हेमंत ने सब भुला दिया। हां हर बात पर राजभवन पहुंचने वाले भाजपा के लोग ही नदारद हो गये थे। उससे उलट रमेश बैस की विदाई के मौके पर दिखा। भाजपा नेताओं के साथ हेमंत ने विदाई दी। मगर हेमंत सरकार की ओर से औपचारिक शिष्टाचार अदा किया गया।
द्रौपदी मुर्मू की तरह रमेश बैस की तारीफ में हेमंत के बोल नहीं फूटे। संबंधों का एहसास दिख गया। दरअसल सिर्फ डेढ़ साल का रमेश बैस का कार्यवाल विवादों से घिरा रहा। रमेश बैस ने लगातार हेमंत सरकार को दबाव में रखा। आते ही टीएसी नियमावली पर विवाद को हवा दे दी। अलग-अलग कारणों से विधानसभा से आठ विधेयकों को आपत्ति के साथ वापस कर दिया। उनकी प्रशासनिक सक्रियता सरकार को चुभती रही। खुद के नाम माइनिंग लीज (ऑफिस ऑफ प्रॉफिट) मामले में चुनाव आयोग की सिफारिश पर बंद लिफाफे के बम ने रही सही कसर पूरी कर दी। लिफाफा बम ने हेमंत सरकार को झकझोर दिया। खूब राजनीति हुई। विधयकों को बचाने में रिसॉर्ट पॉलिटिक्स चलता रहा। लगा राज्यपाल खेल रहे हैं। विवाद सड़क पर आ गया। मगर लिफाफा नहीं खुला। राज्यपाल बंद लिफाफा के साथ ही यहां से रवाना भी हो गये। यह बात अलग है कि कम समय में रमेश बैस का तबादला भी एक पुरस्कार के रूप में देखा जा रहा है, बड़ा प्रदेश और देश की औद्योगिक राजधानी के रूप में ख्यात महाराष्ट्र का राज्यपाल बनाया गया है।
1932 के खतियान आधारित स्थानीयता नीति से संबंधित विधेयक की वापसी पर तो हेमंत सोरेन पूरी तरह फट पड़े कह दिया कि जो राज्यपाल चाहेंगे नहीं होगा, जो सरकार चाहेगी वह होगा। बहरहाल नये राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन के सामने चुनौतियां कायम है। सरकार फिर से राजभवन भेजने की घोषणा कर चुकी है। 1932 का खतियान आधारित स्थानीयता नीति से संबंधित विधेयक हो या ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण से जुड़ा मामला या टीएसी नियमावली और चुनाव आयोग का बंद लिफाफा या फिर सरना कोड से संबंधित विधेयक नये राज्यपाल का इन पर क्या रुख होता है समय बतायेगा। इसी के साथ सरकार के साथ उनके रिश्तों का हिसाब भी तय होगा।