जेएनयू राजद्रोह मामले में दिल्ली सरकार ने शुक्रवार को कोर्ट से कहा कि पुलिस ने जल्दबाजी में और गुपचुप तरीके से चार्जशीट दाखिल की है। कन्हैया कुमार तथा अन्य के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी देने के बारे में फैसला लेने के लिए सरकार को एक महीने से ज्यादा समय लगेगा।
दिल्ली की आप सरकार ने मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट दीपक शहरावत की कोर्ट में आरोप लगाया कि पुलिस ने सक्षम अधिकारी से मंजूरी लिए बगैर बेहद जल्दबाजी में और गुपचुप तरीके से चार्जशीट दाखिल कर दी। इससे पहले कोर्ट ने दिल्ली सरकार को निर्देश दिया था कि वह मुकदमा चलाने की मंजूरी देने के बारे में स्पष्ट समय सीमा के साथ उचित जवाब दाखिल करे।
सरकार से नहीं मिली मंजूरी
जेएनयू में देश विरोधी नारे लगाने के आरोप में दिल्ली पुलिस की ओर से राजद्रोह को लेकर 14 जनवरी को चार्जशीट दाखिल की गई थी लेकिन दिल्ली सरकार ने अभी तक दिल्ली पुलिस को इस आरोप के लिए केस चलाने की मंजूरी नहीं दी है, जबकि ऐसे मामले में राज्य सरकार की मंजूरी अनिवार्य है। इससे पहले कोर्ट ने कोर्ट ने दिल्ली सरकार से मंजूरी नहीं मिलने पर कहा था कि अधिकारी अनिश्चितकाल तक फाइल अटका कर नहीं रख सकते हैं।
..तो नहीं चलेगा 124ए का केस
चार्जशीट में कन्हैया कुमार समेत कई आरोपियों के खिलाफ राजद्रोह की धारा-124ए लगाई है। इस धारा में कोर्ट सीआरपीसी की धारा-196 के तहत तभी संज्ञान ले सकता है जब दिल्ली सरकार की मंजूरी मिलेगी। अगर दिल्ली सरकार ने समय से मंजूरी नहीं दी तो कोर्ट देशद्रोह की धारा-124ए पर संज्ञान नहीं लेगा और ये धारा स्वत: ही खत्म हो जाएगी। अगर दिल्ली सरकार की मंजूरी नहीं मिली तो कोर्ट इस धारा को छोड़कर अन्य धाराओं में संज्ञान ले लेगा।
देश विरोधी नारे लगाने का आरोप
पुलिस ने जेएनयू परिसर में नौ फरवरी 2016 को आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान कथित तौर पर भारत विरोधी नारे लगाने को लेकर दायर 12सौ पन्ने की चार्जशीट में कन्हैया कुमार के अलावा विश्वविद्यालय के पूर्व छात्रों उमर खालिद और अनिर्बान भट्टाचार्य को भी आरोपी बनाया है। इसमें कहा गया है कि वह परिसर में एक कार्यक्रम का नेतृत्व कर रहे थे और उन्होंने विश्वविद्यालय परिसर में देश विरोधी नारे लगाए।