नूपुर शर्मा पर टिप्पणी करने वाले जज जस्टिस जेबी पारदीवाला ने रविवार को कहा कि कोर्ट की आलोचना स्वीकार है लेकिन जजों पर निजी हमले नहीं किए जाना चाहिए, यह ठीक नहीं है। जस्टिस पारदीवाला ने आगे कहा कि हमारे संविधान के तहत कानून के शासन को बनाए रखने के लिए पूरे देश में डिजिटल और सोशल मीडिया को रेगुलेट करने की जरूरत है।
जस्टिस पारदीवाला ने एक कार्यक्रम में कहा कि लोकतंत्र में हमने इस बात को चुना है कि हम कोर्ट के फैसलों के मुताबिक चलेंग।. किसी मामले को सुनते समय जजों को उस पर समाज के विचार का कभी पता होता है, कभी नहीं, लेकिन वह उससे प्रभावित नहीं हो सकते। वह कानून के मुताबिक ही अपनी कार्रवाई करते हैं।
पारदीवाला ने उदाहरण देते हुए कहा कि देश में आज़ादी के बाद ज्यूरी सिस्टम को खत्म कर दिया। इसकी वजह थी कि इसमें बहुमत की बात मानी जाती थी। यह ज़रूरी नहीं कि बहुमत की राय ही न्याय हो.। सुप्रीम कोर्ट जज बनने से पहले गुजरात हाई कोर्ट के न्यायाधीश रहे पारदीवाला ने समलैंगिकता को लेकर आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले का भी उदाहरण दिया। उन्होंने कहा कि यह फैसला समाज के बहुमत की राय से अलग दिया गया था।
उन्होंने डिजीटल और सोशल मीडिया की भूमिका पर सवाल उठाते हुए कहा किइसका न्यायिक व्यवस्था पर भी बुरा असर पड़ सकता है। आज के समय में सोशल और डिजिटल मीडिया बहुत शक्तिशाली माध्यम है। अपने फैसलों के लिए जिस प्रकार से जजों पर वाक हमले किए जा रहे हैं, वे उन्हें एक खतरनाक परिदृश्य की तरफ ले जा रहे हैं, जहां जजों को यह सोचना पड़ता है कि मीडिया क्या सोचता है, बजाय इसके कि कानून वास्तव में क्या कहता है। कई बार इनके जरिए संवेदनशील मामलों में कोर्ट के बारे में गलत राय बनाने की कोशिश की जाती है। सरकार और संसद को इस पर विचार कर उचित कानून बनाना चाहिए।
बता दें कि नूपुर शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी। इसमें उन्होंने मांग की थी कि देशभर में उनके खिलाफ दर्ज मामलों की सुनवाई दिल्ली में हो। नूपुर ने अपनी जान को खतरा भी बताया था। हालांकि, कोर्ट ने नूपुर को कोई राहत देने से इनकार कर दिया था और टीवी पर माफी मांगने की बात कही थी।