आखिर मजदूरों के विरोध के चलते कर्नाटक सरकार को झुकना ही पड़ा। राज्य सरकार ने श्रमिक स्पेशल ट्रेनें रद्द करने के अपने फैसले पर यू-टर्न लेते हुए इन्हें शुक्रवार से फिर से शुरु करने का ऐलान किया है। इस फैसले से पहले ट्रेनें रद्द करने पर कर्नाटक में फंसे प्रवासी मजदूर सड़क पर उतरकर सरकार के खिलाफ आंदोलन करने की तैयारी में थे और चौतरफा राज्य सरकार के इस फैसले की आलोचना हो रही थी। ये ट्रेनें कर्नाटक में फंसे प्रवासी मजदूरों, छात्रों, टूरिस्टों, तीर्थयात्रियों और अन्य लोगों को उनके गृह प्रदेशों तक ले जाने के लिए बंगलुरु से चलेंगी।
इससे पहले कर्नाटक सरकार ने प्रवासी मजदूरों को झटका देते हुए बुधवार को 10 श्रमिक ट्रेनें रद्द कर दी थीं। ये ट्रेनें अगले पांच दिनों के भीतर श्रमिकों को उनके राज्य पहुंचाने के लिए चलाई जानी थी। बताया जाता है कि एक दिन पहले प्रदेश के मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने बिल्डरों के साथ बैठक की थी जिसके बाद यह फैसला आया। माना जा रहा है कि कर्नाटक सरकार ने बिल्डरों के दबाव में यह कदम उठाया। क्योंकि जब भी काम शुरू होगा तब श्रमिकों की कमी का असर निर्माण कार्यों पर पड़ेगा।
राज्यों से मांगी सैद्धांतिक मंजूरी
गुरुवार को राज्य सरकार ने नौ राज्यों को पत्र लिखकर उनसे इस बात पर सहमति मांगी कि 8 से 15 के बीच इन सभी को ट्रेन से पहुंचाने का बंदोबस्त किया जाएगा। इन राज्यों में झारखंड, बिहार, यूपी, मणिपुर, त्रिपुरा, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, राजस्थान, ओडिशा शामिल हैं। अभी तक केवल बिहार और मध्य प्रदेश से सहमति मिली है।
प्रवासी मजदूर आंदोलन के नोडल अधिकारी राज्य के प्रमुख राजस्व सचिव एन मंजूनाथ प्रसाद ने अलग-अलगे पत्रों में अपने समकक्षों से शुक्रवार से शुरू होने वाली विशेष ट्रेनों की आवाजाही के लिए सैद्धांतिक मंजूरी देने के लिए कहा था।
विपक्ष ने की सरकार के फैसले की आलोचना
विपक्ष ने राज्य की भाजपा सरकार की आलोचना करते हुए कहा था कि प्रवासी मजदूरों के साथ "बंधुआ मजदूरों" से भी बदतर माना जाता है। यहां तक कि मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने अपने मूल राज्यों को जाने की इच्छा रखने वाले एक लाख से अधिक मजदूरों से अपील की है कि निर्माण और औद्योगिक गतिविधियां शुरू हो गई हैं।
येदियुरप्पा ने कोविड-19 के चलते परेशान लोगों के लिए 1,610 करोड़ रुपये के राहत पैकेज की घोषणा की है। जिसमें पंजीकृत श्रमिकों के लिए 5,000 रुपये का मुआवजा शामिल था। उल्लेखनीय है शहर में बड़ी संख्या में प्रवासी कामगार अपने-अपने घर लौटना चाहते हैं क्योंकि उनके पास न तो रोजगार है, ना ही पैसा। लगभग 53,000 लोगों ने अकेले बिहार लौटने के लिए पंजीकरण कराया था।
बिल्डरों के साथ हुई थी बैठक
इस मुद्दे से करीबी तौर पर जुड़े एक सूत्र ने बताया कि भवन निर्माताओं ने मुख्यमंत्री को इस बात से अवगत कराया था कि यदि प्रवासी कामगारों को वापस जाने की अनुमति दे दी गई तो मजदूरों की कमी पड़ जाएगी। भवन निर्माताओं ने कहा कि लॉकडाउन के नियमों में छूट के चलते निर्माण सामग्री की आूपर्ति कोई बड़ा मुद्दा नहीं है, लेकिन यदि प्रवासी कामगारों को अपने-अपने राज्य वापस जाने की अनुमति दे दी गई तो शहर में मजदूरों की कमी पड़ जाएगी। बैठक के बाद मुख्यमंत्री ने मजदूरों से रूके रहने का अनुरोध किया और उन्हें हर संभव सहायता का भरोसा दिलाया।