कर्नाटक में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने जस्टिस नागमोहन दास की रिपोर्ट को मंजूरी देते हुए लिंगायत समुदाय को एक अलग धर्म बनाने की सिफारिश की है। राज्य सरकार इसे लेकर अब केंद्र सरकार को चिट्ठी लिखेगी।
राज्य सरकार ने लिंगायतों की लंबे समय से चली आ रही इस मांग पर विचार के लिए हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस नागामोहन दास की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया था। इस समिति ने लिंगायत समुदाय के लिए अलग धर्म के साथ अल्पसंख्यक दर्जे की सिफारिश की थी, जिसे कैबिनेट की तरफ से अब मंजूरी मिल गई। अब यह सिफारिश केंद्र सरकार के पास भेजी जाएगी।
Karnataka Govt has accepted suggestions of Nagbhushan committee; cabinet has given nod to the recommendation of separate religion for Lingayat community pic.twitter.com/Q6cddBQ7ix
— ANI (@ANI) March 19, 2018
कर्नाटक सरकार में मंत्री ने बी पाटिल ने कहा, 'कर्नाटक सरकार ने लिंगायत को अलग धर्म बनाने के लिए जस्टिस नागमोहन दास की रिपोर्ट को मंजूर कर लिया है। लिंगायत बासवेश्वरा की विचारधारा को माने वाले हैं। हम भारत सरकार को इस बारे में लिखेंगे’।
इससे पहले रविवार को लिंगायत संतों के एक समूह ने कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धरमैया से मुलाकात की थी और उस आधिकारिक कमेटी की रिपोर्ट लागू करने का उनसे अनुरोध किया, जिसमें उनके समुदाय को एक अलग धार्मिक एवं अल्पसंख्यक दर्जा देने की सिफारिश की गई है।
संतों का नेतृत्व गाडग आधारित तोंदार्य मठ सिद्धलिंग स्वामी ने की। उन्होंने सिद्धरमैया से यहां उनके निवास पर मुलाकात की और नागमोहन दास कमेटी रिपोर्ट पर विचार करने और उसे लागू करने का अनुरोध किया।
बता दें राज्य में लिंगायत समुदाय काफी प्रभावशाली माना जाता है कर्नाटक में इनकी संख्या करीब 18 प्रतिशत हैं। राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी के मौजूदा सीएम उम्मीदवार बीएस येदियुरप्पा इसी समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। ऐसे में इस साल अप्रैल-मई में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिहाज से मुख्यमंत्री का यह फैसला काफी अहम माना जा रहा है।
जानें क्या ये है लिंगायत
12वीं सदी में समाज सुधारक बासवन्ना ने हिंदुओं में जाति व्यवस्था में दमन के खिलाफ आंदोलन छेड़ा था। बासवन्ना ने वेदों को खारिज किया और वह मूर्ति पूजा के भी खिलाफ थे। आम मान्यता यह है कि वीरशैव और लिंगायत एक ही हैं।
वहीं, लिंगायतों का मनना है कि वीरशैव लोगों का अस्तित्व बासवन्ना के उदय से भी पहले था और वीरशैव भगवान शिव की पूजा करते हैं। लिंगायत समुदाय के लोगों का कहना है कि वे शिव की पूजा नहीं करते बल्कि अपने शरीर पर इष्टलिंग धारण करते हैं। यह एक गेंदनुमा आकृति होती है, जिसे वे धागे से अपने शरीर से बांधते हैं।