सीबीआई डायरेक्टर आलोक वर्मा की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को सीवीसी को दो सप्ताह के भीतर रिटायर्ड जस्टिस एके पटनायक के नेतृत्व में जांच करने का आदेश दिया है। पटनायक आलोक वर्मा के खिलाफ लगे भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच करने वाली कमेटी के मुखिया होंगे। इस दौरान सीबीआई के अंतरिम डायरेक्टर बनाए गए नागेश्वर राव कोई नीतिगत फैसला नहीं लेंगे। मामले की अगली सुनवाई 12 नवंबर को होगी।
कौन हैं एके पटनायक
69 साल के अनंग कुमार पटनायक सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज हैं। वो 2009 से लेकर 2014 तक सुप्रीम कोर्ट के जज रह चुके हैं। दिल्ली यूनिवर्सिटी से राजनीति शास्त्र में स्नातक और कटक से कानून की पढ़ाई करने वाले सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज एके पटनायक का जन्म 3 जून 1949 को हुआ।
पूर्व जज एके पटनायक 1974 में ओडिशा बार एसोसिएशन के सदस्य बने। वकालत शुरू करने के करीब 20 साल बाद 1994 में वो ओडिशा हाई कोर्ट के अतिरिक्त सेशन जज बने, लेकिन जल्द ही उन्हें गुवाहाटी हाई कोर्ट भेज दिया गया जहां अगले ही साल वो हाई कोर्ट के स्थायी जज बन गए और 2002 में अपने गृह राज्य में भेजे जाने से पहले सात साल तक कार्यरत रहे। मार्च 2005 में जस्टिस पटनायक छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस बनाए गए। इसी साल अक्टूबर में वो मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस नियुक्त किए गए।
2005 में बने थे सुप्रीम कोर्ट के जज
नवंबर 2009 में उन्हें सुप्रीम कोर्ट का जज बनाया गया और पांच साल बाद जून 2014 में जस्टिस पटनायक रिटायर हो गए। उन्हें 2012 में 2जी स्पेक्ट्रम मामले में आने वाले केसों की सुनवाई करने के लिए बनाई गई दो जजों की बेंच में शामिल किया गया था। इस बेंच में उनके अलावा खुद तत्कालीन चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया एस एच कपाड़िया थे।
कॉलेजियम सिस्टम पर उठाए थे सवाल
जस्टिस एके पटनायक का नाम एक बार तब सुर्खियों में आया था, जब उन्होंने कोर्ट में जजों की नियुक्ति पर कॉलेजियम सिस्टम पर सवाल उठाए थे। 2016 में उन्होंने कहा था कि कॉलेजियम सिस्टम की वजह से जजों की गुणवत्ता खतरे में आ जाती है। उन्होंने कॉलेजियम सिस्टम के काम करने के तरीके को ‘गिव एंड टेक नीति’ का नाम दिया था।
चर्चित सौमित्र सेन केस से भी जुड़े थे
जस्टिस पटनायक अपने कार्यकाल के दौरान जिस सबसे चर्चित केस से जुड़े वो था जस्टिस सौमित्र सेन का मामला। पटनायक उस 'इन-हाउस कमिटी' के सदस्य थे जिसने कोलकाता हाईकोर्ट के जस्टिस सौमित्र सेन के खिलाफ लगे फंड के गलत इस्तेमाल के आरोपों की जांच की थी। इस जांच के बाद भारत में ऐसा पहली बार हुआ था जब किसी जज के खिलाफ महाभियोग चलाया गया हो। दोनों सदनों में महाभियोग प्रस्ताव पारित होने के बाद सौमित्र सेन को इस्तीफा देना पड़ा था।