भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में हाल में की गई गिरफ्तारियों पर पुणे पुलिस का दावा है कि भीमा कोरेगांव हिंसा राज्य सरकार के खिलाफ एक सोची-समझी साजिश थी और पुलिस के पास इसके पर्याप्त सबूत हैं।
एडीजी महाराष्ट्र पुलिस पीबी सिंह ने एक प्रेस कांफ्रेस में बताया कि भीमा कोरेगांव में हिंसा फैलाने का प्लान घटना के आठ महीने पहले ही बनाया जाने लगा था। जो कागजात और अन्य चीजें बरामद की गई हैं, वो साबित करने के लिए काफी हैं कि इनका भीमा कोरेगांव हिंसा से संबंध था और एल्गर परिषद रैली भी इसका ही एक हिस्सा थी।
जांच से माओवादियों से संबंधों का हुआ खुलासा
इस मामले की जांच के दौरान इसमें माओवादियों के शामिल होने के संकेत मिले थे जबकि दूसरी ओर कुछ हिंदू संगठनों से जुड़े कार्यकर्ताओं की तरफ भी इशारा किया गया था। जब पुलिस को यकीन हो गया कि इनके माओवादियों से संबंध हैं, इसके बाद ही इन लोगों की धरपकड़ के लिए अलग-अलग शहरों में छापेमारी की गई थी। सबूत साफ इशारा करते हैं कि इनके माओवादियों के साथ संबंध हैं।
संभाजी और मिलिंद पर पहले दर्ज हो चुका है मामला
पुलिस अधिकारी के वेंकटेशम ने बताया कि माओवादियों से वामपंथी विचारकों के संबध का मामला एल्गर परिषद तक नहीं है, बल्कि इससे भी बड़ा है। एल्गर परिषद रैली से माओवादियों के संबंधों की जांच पुणे पुलिस द्वारा की जा रही है। जबकि संभाजी भिडे़ और मिलिंद के खिलाफ पहले ही मामला दर्ज किया जा चुका है।
हाल ही में पुलिस ने 5 वामपंथी विचारकों को गिरफ्तार किया था जिसमें वामपंथी विचारक वरवरा राव, पत्रकार गौतम नवलखा, एक्टिविस्ट और वकील सुधा भारद्वाज, एक्टिविस्ट वेरनन गोंजालविस और कार्टूनिस्ट अरुण फरेरा शामिल हैं।