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दवा, सुविधा और सम्मान चाहिए...वर्ल्ड थैलेसीमिया डे पर मरीजों ने की राष्ट्रपति से मुलाकात, रखीं ये मांगें

'हम जीना चाहते हैं… पर हर 15 दिन में हमें खून चाहिए होता है और खून भी ऐसा जो सेफ हों...'राष्ट्रपति द्रोपदी...
दवा, सुविधा और सम्मान चाहिए...वर्ल्ड थैलेसीमिया डे पर मरीजों ने की राष्ट्रपति से मुलाकात, रखीं ये मांगें

'हम जीना चाहते हैं… पर हर 15 दिन में हमें खून चाहिए होता है और खून भी ऐसा जो सेफ हों...'राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू से थैलेसीमिया के हजारों मरीजों की तरफ से ये गुहार लगाई गई है। थैलेसीमिया के मरीजों को सस्ती और असरदार दवाएं उपलब्ध कराने के साथ ही यह भी कहा कि हम चाहते हैं कि लोग इस बीमारी से इतना अवेयर हों कि हमें बोझ न समझा जाए।

गौरतलब है कि थैलेसीमिया एक आनुवंशिक (genetic) बीमारी है। इसमें शरीर सामान्य हीमोग्लोबिन नहीं बना पाता और मरीज को हर कुछ हफ्तों में ब्लड ट्रांसफ्यूजन कराना पड़ता है। यह बीमारी बचपन से शुरू होती है और जीवनभर चलती है। इसके इलाज में दवाएं महंगी, ब्लड मिलना मुश्किल और सरकारी सिस्टम में कई खामियां बताई जाती हैं। आज 8 मई वर्ल्ड थैलेसीमिया डे पर Thalassemia Patients Advocacy Group (TPAG) ने देश की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से मरीजों की मदद की अपील की है।

सुरक्षित खून हमारा हक है

राष्ट्रपति को लिखे पत्र में TPAG ने कहा है कि अभी भी कई अस्पतालों में Whole Blood दिया जा रहा है, जबकि यह थैलेसीमिया के मरीजों के लिए यह सही नहीं होता. उन्होंने राष्ट्रपति से अपील की है कि हर सरकारी अस्पताल में NAT टेस्टिंग होनी चाहिए जिससे HIV, Hepatitis B-C जैसे संक्रमण का खतरा न रहे. एक पेशेंट ने इस पर कहा कि हर बार खून लेते वक्त डर लगता है कि कहीं ये दूष‍ित तो नहीं.

दवाएं जरूरी हैं, लेकिन पॉकेट से बाहर

थैलेसीमिया पेशेंट्स को Iron Chelators नाम की दवाएं लेनी पड़ती हैं, जो शरीर में आयरन की अधिकता से बचाती हैं। ये दवाएं महंगी हैं और हर मरीज पर एक जैसी असर नहीं करतीं। TPAG ने मांग रखी है कि इन्हें Essential Medicines List में शामिल किया जाए और NPPA इनके दाम पर कंट्रोल करे।

देशभर में एक जैसी डे केयर सुविधा मिले

थैलेसीमिया मरीज को हर ब्लड ट्रांसफ्यूजन के साथ डॉक्टर, काउंसलर और सही दवाओं की ज़रूरत होती है। लेकिन ये सुविधा सिर्फ कुछ मेट्रो सिटीज़ तक सीमित है। TPAG ने मांग रखी है कि हर राज्य में एक जैसी Day Care व्यवस्था हो, चाहे सरकार खुद चलाए या प्राइवेट पार्टनरशिप से कराए।

रोकथाम की वैसी ही मुहिम चले जैसे पोलियो में थी

थैलेसीमिया मरीजों ने मांग रखी है कि गर्भवती महिलाओं के लिए prenatal screening, affordable CVS testing, और gynecologists की ट्रेनिंग दी जाए ताकि बीमारी को आने से पहले रोका जा सके। इसके लिए एक राष्ट्रव्यापी अवेयरनेस कैंपेन चलाया जाए, जैसे पहले पोलियो के लिए हुआ था। उन्होंने कहा कि थैलेसीमिया को RPWD Act (दिव्यांगता कानून) में शामिल किया गया है लेकिन आयुष्मान भारत स्कीम में इसे जगह नहीं मिली। TPAG ने कहा है कि इलाज का बोझ सिर्फ ब्लड और दवाओं तक नहीं रुकता – मरीजों को हेपेटाइटिस, ऑस्टियोपोरोसिस और दूसरी बीमारियों से भी जूझना पड़ता है, जिनका इलाज महंगा है। हमसे कहा जाता है कि तुम तो बस ब्लड लो और जी लो...पर बाकी बीमारियों का खर्च कौन उठाए?.

कानून है, लेकिन जागरूकता नहीं

TPAG की मेंबर सेक्रेटरी अनुभा तनेजा मुखर्जी ने कहा कि RPWD Act 2016 को लेकर देश में जागरूकता फैलाई जाए। यह कानून थैलेसीमिया जैसे मरीजों को इंसाफ और सहूलियत दिला सकता है, लेकिन आज भी बहुत से अस्पताल और संस्थाएं इस कानून के तहत मिलने वाले हक से अंजान हैं। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को यह चिट्ठी सिर्फ एक अपील के रूप में नहीं, बल्कि सम्मान और भरोसे की निशानी के रूप में भेजी है।

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