एक बार फिर सीबीआई को लेकर ममता बनर्जी सरकार और मोदी सरकार के बीच तनातनी देखने को मिल रही है। यह कोई पहला मामला नहीं है जब सीबीआई के मिसयूज को लेकर सवाल खड़ा हुआ है। इससे पहले भी मोदी सरकार के शासन में संवैधानिक संस्थाओं की साख भी बड़ा सवाल रही है। मिसयूज को लेकर पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़ और आंध्र प्रदेश सरकार सीबीआई के राज्य में प्रवेश को लेकर पहले ही रोक लगा चुकी है।
पश्चिम बंगाल के ताजा मामले में सीबीआई ने दावा किया कि पोंजी घोटालों में उसकी जांच में पश्चिम बंगाल सरकार और राज्य की पुलिस रोड़े अटका रही है। वहीं, पश्चिम बंगाल सरकार का कहना है कि सीबीआई अधिकारी बिना सर्च वॉरन्ट के ही छापेमारी करने आए थे। अब ममता बनर्जी मोदी सरकार पर केंद्रीय जांच एजेंसी के मिसयूज का आरोप लगाते हुए धरने पर बैठ गई हैं।
इन राज्यों ने लगा रखी है रोक
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल,आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिस्थापना अधिनियम 1976 की धारा 6 द्वारा राज्य के क्षेत्राधिकार में सीबीआई द्वारा अपनी शक्तियों के इस्तेमाल पर रोक लगा दी थी।
असल में कानून के तहत राज्य सरकार को यह अधिकार दिया है कि वह सीबीआई को एंट्री दे या नहीं। सीबीआई दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान अधिनियम-1946 के जरिए बनी संस्था है। अधिनियम की धारा-5 में देश के सभी क्षेत्रों में सीबीआई को जांच की शक्तियां दी गई हैं लेकिन धारा-6 में कहा गया है कि राज्य सरकार की सहमति के बिना सीबीआई उस राज्य के अधिकार क्षेत्र में प्रवेश नहीं कर सकती।
मिसयूज के लगते रहे हैं आरोप
सीबीआई के गैर-जरूरी हस्तक्षेप को लेकर राज्य सरकारें आवाज उठाती रही हैं। सीबीआई के मिसयूज को लेकर भी सवाल उठते रहे हैं। खासतौर पर राजनीतिज्ञों के खिलाफ इसे टूल के तौर पर इस्तेमाल किया जाता रहा है।
राजनीति के लिहाज से यूपी खासा अहम समझा जाता है। ऐसे में हमेशा से केंद्र की सरकारें अपने राजनीतिक हित के लिए इसे दबाती रही है। सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह और बसपा प्रमुख मायावती के खिलाफ लंबे समय से अलग-अलग आरोपों में सीबीआई जांच करती रही है जिसके चलते दोनों पार्टियां हमेशा आरोप लगाती रही हैं कि सीबीआई का इस्तेमाल उन्हें डराने और राजनीतिक लाभ के लिए किया जाता है। पिछले दिनों सीबीआई छापों पर सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी केंद्र सरकार को कठघरे में खड़ा किया था और आरोप लगाया कि सरकार गठबंधन रोकने के लिए सीबीआई का इस्तेमाल कर रही है।पिछले दिनों सीबीआई के तत्कालीन डायरेक्टर आलोक वर्मा की बहाली के बाद खुलकर कई राजनीतिज्ञों ने इस तरह के आरोप लगाए थे।
कोर्ट बता चुका है 'पिंजड़े का तोता'
सुप्रीम कोर्ट ने तो एक बार सीबीआई को ‘सरकार के पिंजड़े में बंद तोता’ तक बता दिया था। तब से यह शब्द सीबीआई के लिए इस्तेमाल होने लगा। यही आरोप लगाकर कुछ राज्यों ने सीबीआई पर रोक लगा दी है और उसकी शक्तियों को सीमित कर रखा है।
मुंबई की एक स्पेशल सीबीआई अदालत ने सीबीआई को लेकर सवाल खड़े करते हुए कहा था कि गैंगस्टर सोहराबुद्दीन शेख, उनकी पत्नी कौसर बी और उसके सहयोगी तुलसीराम प्रजापति की कथित फर्जी मुठभेड़ की जांच सीबीआई पूर्व नियोजित और पूर्व निर्धारित थ्योरी के आधार पर कर रही थी। इसका मकसद केस में नेताओं को फंसाना था। विशेष सीबीआई जज एसजे शर्मा ने 21 दिसंबर को अपने 350 पन्नों के आदेश में यह टिप्पणी की थी। अदालत ने इस फैसले में भी ‘तोते’ वाली दोहराई थी।