Advertisement

इंसानियत की मिसाल: बिहार में जब दो दिन की बच्ची के लिए युवक ने तोड़ा रोजा

हमारे देश और समाज में धर्म-जाति के नाम पर नफरत फैलाने वाली कई ऐसी घटनाएं होती हैं जो इंसानियत पर सवाल...
इंसानियत की मिसाल: बिहार में जब दो दिन की बच्ची के लिए युवक ने तोड़ा रोजा

हमारे देश और समाज में धर्म-जाति के नाम पर नफरत फैलाने वाली कई ऐसी घटनाएं होती हैं जो इंसानियत पर सवाल खड़े कर देती है। लेकिन इसके विपरीत आज भी हमारे देश में कुछ ऐसे लोग हैं जो अपने काम से एक मिसाल के तौर पर सामने आते है, जिनके लिए प्राथमिकता सिर्फ इंसानियत होती है।

कुछ ऐसा ही वाकया एक बार फिर रमजान के पाक महीने में देखने को मिला, जब दो साल की एक बच्ची को बचाने के लिए मुस्लिम युवक ने अपना रोजा तोड़ दिया। इससे पहले भी ऐसा ही एक और मामला देखने को मिला था। जब एक आरिफ खान नाम के शख्स ने रोजा तोड़कर एक हिंदू युवक की जान बचाई, न सिर्फ जान बचाई  बल्कि यह भी साबित कर दिया कि इंसानियत से बड़ा कोई धर्म नहीं।

रोजा बनाए रखने से किसी की जान बचाना ज्यादा जरूरी है: मुस्लिम युवक

ताजा मामला बिहार के दरभंगा का है, जहां एक एसएसबी जवान रमेश सिंह के दो दिन की बच्ची को बचाने के लिए खून की जरूरत थी। जब अशफाक को इस बारे में पता चला तो बिना कुछ और सोचे वह निकल पड़े। उन्होंने बताया कि उन्हें लगा कि किसी की जान बचाना (रोजा बनाए रखने से) ज्यादा जरूरी है।

रोजे में पानी भी नहीं पी सकते जबकि खून देने के लिए कुछ खाना होता है

वहीं इस दौरान जब उन्हें पता चला कि वह जरूरत एक सुरक्षाकर्मी की बेटी को है, तो वह और भी अधिक प्रेरित हुए और उन्होंने रोजा तोड़ दिया। खून देने के लिए कुछ खाना जरूरी होता है जबकि रोजे में पानी भी नहीं पी सकते हैं।

इससे पहले भी कई लोगों ने पेश की ये मिसाल

गौरतलब है कि बिहार के ही गोपालगंज में जावेद आलम नाम के एक व्यक्ति ने भी एक बच्चे की जान बचाने के लिए अपना रोजा तोड़ दिया था। उन्हें रोजे की वजह से अस्पताल ने खून देने से मना कर दिया था लेकिन फिर उन्होंने रोजा तोड़कर बच्चे के लिए खून दे दिया। 

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोर से
Advertisement
Advertisement
Advertisement
  Close Ad