जाने-माने उर्दू शायर फैज की नज्म 'हम देखेंगे' के गैर-हिंदू होने पर भारत में हो रहे विवाद पर उनकी बेटी सलीमा हाशमी ने कहा है कि उनके पिता की लिखी नज्म को हिंदू विरोधी कहना दुखद नहीं, बल्कि हास्यास्पद है। उन्होंने कहा कि उनके पिता के शब्द हमेशा उन लोगों की आवाज बनेंगे जो खुद को व्यक्त करना चाहते हैं।
नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के विरोध के लिए कानपुर आइआइटी में छात्रों द्वारा 'हम देखेंगे..' उद्धत करने के खिलाफ शिकायत के लिए संस्थान द्वारा समिति गठित करने के बारे में पूछे जाने पर सलीमा ने कहा कि वह विवाद से कतई चिंतित नहीं हैं क्योंकि फैज के शब्द उन लोगों को भी आकर्षित कर सकते हैं जो उनकी शायरी के आलोचक हैं।
'सिर्फ नजरिए का फर्क है'
एक इंटरव्यूर सलीमा ने कहा, 'लोगों के समूह द्वारा नज्म के संदेश की जांच करने में कुछ भी दुखद नहीं है, यह हास्यास्पद है। इसको दूसरे नजरिये से देखिए, उन्हें उर्दू शायरी में दिलचस्पी पैदा हो सकती है।' उन्होंने कहा कि कविताएं सीमाओं या भाषा तक सीमित नहीं हैं और यह उन लोगों द्वारा दावा किया जाता है जिन्हें नए शब्दों की आवश्यकता होती है।
'संघर्ष के दिनों में गाई थी कविता'
हाशमी ने कहा कि यह आश्चर्य की बात नहीं है कि फैज सीमा के इस पक्ष या उस पक्ष के लिए प्रासंगिक है। मुझे कुछ साल पहले कहा गया था कि यह कविता नेपाल में राजशाही के खिलाफ लोकतांत्रिक संघर्ष के दिनों में गाई गई थी। उन्होंने कहा कि 1979 में पूर्व पाकिस्तानी जनरल-प्रीमियर जिया-उल-हक की तानाशाही के खिलाफ विरोध करने के लिए लिखी गई कविता, चतुराई से कट्टरता पर हमला करने वाले इस्तेमाल कर रहे हैं और इसे एक क्रांति के तौर पर देखा जाने लगा है। हाशमी ने कहा कि वह खुश है कि उसके पिता अपनी कब्र से परे लोगों से बात कर रहे थे।
'कविता प्रेमियों के लिए प्रासंगित रहेंगे फैज'
इस सवाल पर कि क्या कविता को कट्टरवाद से लड़ने में एक उपकरण के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है, हाशमी ने कहा, "स्वयं कविता मौलिकता से नहीं लड़ सकती है, लेकिन यह लोगों को जुटाने में मदद करके बदलाव के लिए परिस्थितियां पैदा कर सकती है, उन्हें बेहतर भविष्य के लिए साझा आकांक्षाओं और सपनों की भावना दे सकती है।"
हाशमी ने कहा कि उनके पिता, जिनका नवंबर 1984 में निधन हो गया था, हमेशा एक विवादास्पद व्यक्ति थे, लेकिन उनकी कविता ने उनसे नफरत करने वालों से भी अपील की। फैज़ ने केवल पाकिस्तान में बल्कि हमेशा हर जगह कविता के प्रेमियों के लिए प्रासंगिक रहेंगे।
यूं शुरू हुआ था विवाद
बता दें कि जामिया मिलिया इस्लामिया में छात्रों और उनके समर्थकों ने सीएए के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दौरान फैज की नज्म 'हम देखेंगे' को गाया था। इसके बाद आईआईटी-कानपुर में छात्रों की ओर से प्रदर्शन के दौरान फैज की कविता के गाए जाने पर संस्थान को हिंदू विरोधी संबंधी कई शिकायतें मिलीं जिस पर एक जांच समिति का गठन कर दिया गया। इसके बाद ही पूरा विवाद शुरू हुआ। हालांकि कई लोगों का कहना है कि यह कविता फैज ने पाकिस्तान के तत्कालीन तानाशाह और शासक जिया-उल-हक के खिलाफ लिखी थी। इस विवाद पर कई कवि और लेखक पहले ही निंदा कर चुके हैं।