कोविड-19 महामारी से प्रवासी मजदूरों में डर का माहौल बनने और लॉकडाउन के बाद उनके पलायन के लिए सरकार द्वारा मीडिया को दोषी ठहराए जाने की एडिटर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया ने आलोचना की है। गिल्ड का कहना है कि ऐसे कदमों से खबरों के प्रसार में बाधा आएगी। गुरुवार की रात जारी एक बयान में गिल्ड ने कहा कि इस समय मीडिया को दोषी ठहराना मीडिया कर्मियों द्वारा कठिन परिस्थितियों में किए जा रहे कार्यों को कमतर आंकना है।
सुप्रीम कोर्ट में सरकार ने मीडिया को ठहराया था जिम्मेदार
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान सरकार ने मीडिया को दोषी ठहराया था। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि मीडिया को कोविड-19 महामारी से जुड़ी उन्हीं घटनाओं को प्रकाशित करना चाहिए जो सरकार की तरफ से दी जा रही हैं। कोर्ट ने कहा था कि शहरों में काम करने वाले बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर इस फेक न्यूज़ के कारण पलायन करने लगे कि लॉकडाउन 3 महीने से ज्यादा समय तक रहेगा।
कोर्ट का सम्मान, लेकिन उसकी यह सलाह अनावश्यक: गिल्ड
गिल्ड ने कहा कि वह कोर्ट का सम्मान करता है लेकिन उसकी इस सलाह को अनावश्यक मानता है। इसके मुताबिक ऐसे आरोपों से अभूतपूर्व संकट के समय में खबरों के प्रसार में बाधा पहुंच सकती है। दुनिया में कोई भी लोकतंत्र अपने मीडिया का गला दबाकर महामारी से नहीं लड़ रहा है।
पत्रकार के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का भी विरोध
गिल्ड ने द वायर न्यूज़ पोर्टल के एडिटर इन चीफ के खिलाफ एफआईआर दर्ज किए जाने का भी विरोध किया है। गिल्ड के अनुसार इस समय आपराधिक कानून के तहत एफआईआर दर्ज करना जरूरत से ज्यादा प्रतिक्रिया दिखाने और धमकाने जैसा है। मीडिया को इस तरह धमकाना या प्रवासी मजदूरों के पलायन के लिए उसे दोषी ठहराना गलत है और यह संदेश वाहक को रोकने के समान है। गिल्ड यह मानता है कि मीडिया का व्यवहार जिम्मेदाराना और भेदभाव से रहित होना चाहिए। लेकिन ऐसे व्यवधानों से इन लक्ष्यों को हासिल करने में दिक्कतें आएंगी।