सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात कांग्रेस के चीफ व्हिप शैलेश मनुभाई परमार की याचिका पर अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा है कि राज्यसभा चुनाव में नोटा का इस्तेमाल नहीं किया जाएगा। नोटा को सिर्फ प्रत्यक्ष चुनाव में ही लागू किया जाना चाहिए।
30 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात कांग्रेस की याचिका पर सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रख लिया था। मामले की सुनवाई के दौरान कांग्रेस के साथ एनडीए ने भी राज्यसभा चुनाव में नोटा का विरोध किया जबकि चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में राज्यसभा चुनाव में नोटा के इस्तेमाल पर कहा है कि ये कदम आयोग ने संज्ञान लेकर नहीं किया बल्कि उसे सुप्रीम के ही आदेश के तहत किया है।
आयोग ने कोर्ट के फैसले के अमल की दी दलील
चुनाव आयोग ने इस बारे मे सुप्रीम कोर्ट के 2013 के फैसले का पालन करते हुए राज्यसभा चुनाव में नोटा का इस्तेमाल करना शुरू किया था। अगर वह राज्यसभा चुनाव में नोटा का इस्तेमाल शुरू करता तो यह अदालती आदेश की अवहेलना का मामला बनता है। 2013 के आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जिस तरह हर मतदाता को वोट डालने का अधिकार है उसी तरह उसे किसी को भी वोट ना देने का अधिकार भी है। सुप्रीम कोर्ट का आदेश सभी चुनाव को लेकर है और ये प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों तरह के चुनाव पर लागू होगा।
नोटिफिकेशन पर सवाल
वहीं, सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि राज्यसभा चुनाव पहले से ही उलझन भरे हैं। चुनाव आयोग इन्हें क्यों और जटिल बनाना चाहता है? कानून किसी विधायक को नोटा के इस्तेमाल की इजाजत नहीं देता, लेकिन इस नोटिफिकेशन के जरिए चुनाव आयोग विधायक के वोट ना डालने का अधिकार दे रहा है जबकि ये उसका संवैधानिक दायित्व है तो वो नोटा का रास्ता इस्तेमाल नहीं कर सकता। हमें इस पर संदेह है कि नोटा के जरिए किसी विधायक को उम्मीदवार को वोट डालने से रोका जा सकता है। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड ने कहा कि बेलेट बॉक्स में डालने से पहले कोई विधायक बैलेट पेपर को क्यों दिखाए?
केंद्र ने किया याचिका का समर्थन
मामले की सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने गुजरात कांग्रेस के चीफ व्हिप शैलेश मनुभाई परमार की याचिका का समर्थन करते हुए कहा कि नोटा का इस्तेमाल राज्यसभा चुनाव के दौरान नही किया जाना चाहिए। केंद्र सरकार ने कहा कि नोटा का इस्तेमाल वही इस्तेमाल होगा जहां प्रतिनिधि जनता के द्वारा सीधे चुने जाते है लेकिन राज्यसभा में इसका इस्तेमाल नही हो सकता क्यों कि यहां प्रतिनिधि प्रत्यक्ष तौर पर नही चुने जाते।
2017 में दी थी चुनौती
पिछले साल तीन अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस की याचिका पर नोटा पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने कहा था इसकी सुनवाई जारी रखी जाएगी कि राज्यसभा के चुनाव में नोटा का इस्तेमाल हो सकता है या नही। कोर्ट ने गुजरात राज्यसभा चुनाव में नोटा के इस्तेमाल के खिलाफ चुनाव आयोग को नोटिस जारी करके जवाब मांगा था। नोटा राज्यसभा चुनाव में 2014 से जारी है जबकि कांग्रेस ने 2017 में चुनौती दी। 2015 से अब तक गुजरात समेत 25 राज्यसभा चुनाव नोटा से हो चुके हैं।
क्या है नोटा
नोटा का मतलब (नन ऑफ द अबव) इनमे से कोई नहीं हैं | अगर मतदाता को दिये गये चुनाव चिन्ह और उनके उम्मीदवार में से कोई भी पद के लिए उपयुक्त नहीं लग रहा हैं तो वह नोटा पर निशान लगा सकता हैं। वर्ष 2013 में चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट के जरिये नोटा चिन्ह को चुनाव में जगह दिलवाई थी। 27 सितम्बर 2013 को दिए गए अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि नकारात्मक वोट भी अनुच्छेद 19-1 ए के तहत अभिव्यक्ति की आजादी का संवैधानिक अधिकार है, जिसके लिए मनाही नहीं की जा सकती।