यकीनन, युवा ही आज हैं। कल भी उन्हीं का है। वे ही देश की धड़कन हैं। इस धड़कन को सुनना वाकई काफी मायने रखता है, ताकि हम उनके दिमाग में झांक सकें कि आखिर चल क्या रहा है। मेरे लिए 21 साल की बेटी का पिता होने के नाते यह कुछ अधिक ही सही है। मेरी फितरत शंकालु तो नहीं है मगर मैं हर फिक्रमंद बाप की तरह समय-समय पर यह जानने की कोशिश करता हूं कि बेटी क्या सोच रही है, उसमें किन चीजों को लेकर कौतूहल है, और दुनिया के बारे में उसकी सोच क्या है। इसका नतीजा अभी तक मिलाजुला या धुंधला-सा ही है। हालांकि मैं अपनी बेटी के बारे में बखूबी जानता हूं, उसके शौक क्या हैं और उसके दोस्त कौन-कौन हैं, वगैरह। फिर भी, मेरा अंदाजा है कि बहुत कुछ ऐसा जरूर हो सकता है जिसका मुझे एहसास नहीं है। वजहः अपनी उम्र की हर युवा की तरह वह एक पल बेहद खुश हो सकती है और दूसरे ही पल किसी बात से चिढ़कर मायूस हो सकती है। यह पल-पल मिजाज बदलना, बिना कोई सवाल किए बात मानने और मन के बेतुके विद्रोह के बीच झूलना, कथित तौर पर इस उम्र के युवाओं में सामान्य होता है लेकिन इससे मैं कई बार उलझन में पड़ जाता हूं। मुझे लगता है कि हर मां-बाप को इस उम्र के बच्चों के साथ ऐसी उलझन से दो-चार होना पड़ता है।
इस बार आउटलुक के अंक में, हमें देश के युवाओं के मन में झांकने, उनके विचारों को जानने का विरला मौका मिला है, जिसमें मेरी बेटी भी शामिल है। हमने युवा दिमाग को समझने के लिए एक जनमत सर्वेक्षण कराया, ताकि उनकी पसंद, नापसंद, आशंकाओं, आकांक्षाओं और जीवनशैली को जाना जा सके। हमने यह सर्वेक्षण उस अवधि में किया, जब पूरा देश चुनाव के रंग में रंगा हुआ और नई सरकार चुनने की प्रक्रिया में शामिल था। इन चुनावों में करीब आठ करोड़ युवा मतदाता पहली बार अपने मताधिकार का प्रयोग करने जा रहे थे, और चुनाव इस मुद्दे पर लड़ा गया कि यह आकांक्षी भारत का भविष्य तय करने वाला है।
लिहाजा, इस बात से आश्वस्त होकर कि युवाओं का मन टटोलने का यही सही समय है, आउटलुक ने प्रतिष्ठित मार्केट रिसर्च संगठन कार्वी इनसाइट्स से संपर्क किया कि देश के आठ प्रमुख शहरों में 18 वर्ष से 21 वर्ष की उम्र वाले युवाओं की राय जानने के लिए जनमत सर्वेक्षण करे।
इन शहरों का चयन सावधानीपूर्वक इस लिहाज से किया गया, ताकि देश की भौगोलिक विविधता का पूरा प्रतिनिधित्व हो सके। हमारी इस सूची में दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नै जैसे महानगर तो हैं ही, दूसरे दर्जे के शहर लखनऊ, इंदौर, कोच्चि और गुवाहाटी भी हैं। मकसद यह था कि विभिन्न पृष्ठभूमि के युवाओं की विविध मुद्दों पर सोच का एक वैज्ञानिक नमूना जुटाया जाए।
22-25 मई के बीच किए गए जनमत सर्वेक्षण के कुछ नतीजे बेहद चौंकाते हैं, भले अवाक न करते हों। हम लगातार ऐसी चर्चा करते रहते हैं कि युवा अब पहले से ज्यादा भौतिकतावादी हो गए हैं, उनमें धन-धौलत की लालच बढ़ गई है। लेकिन हमारा सर्वेक्षण यह बताता है कि युवा न केवल अपने सपने को पूरा करने के लिए मेहनत कर रहे हैं, बल्कि अपनी धार्मिक भावनाओं से भी जुड़े हुए हैं और नियमित रूप से पूजास्थलों में जाते हैं। कुछ तो हर दिन पूजास्थलों पर पहुंचते हैं मगर दो-तिहाई हफ्ते में एक बार जरूर मंदिर, मस्जिद, गुरद्वारे, गिरजाघर जाते हैं।
यही नहीं, यह कहने वाले भी गलत हैं कि पारिवारिक बंधन टूट रहे हैं। तीन-चौथाई युवा आज भी अपने रोल मॉडल अपने मां-पिता या रिश्तेदारों में ही तलाशते हैं।
सर्वेक्षण में और भी कई दिलचस्प नतीजे सामने आए, जिनमें कुछ तो जरूर आपको सोचने पर मजबूर करेंगे। मसलन, महानगरों या मेट्रो शहरों में बड़ी संख्या में युवा, नेताओं को देश के लिए आतंकवादियों से ज्यादा खतरनाक मानते हैं। और अब विदेश जाकर पढ़ाई करने का फैशन भी बासी पड़ गया है।
युवाओं के जनमत सर्वेक्षण के अलावा इस बार आउटलुक के अंक में हम देश के श्रेष्ठ प्रोफेशनल कॉलेजों की रैंकिंग का चौदहवां संस्करण भी छाप रहे हैं।
हर साल आने वाली इस रैंकिंग का सभी को इंतजार रहता है। इसके तहत हमने नौ श्रेणियों जैसे इंजीनियरिंग, मेडिकल, डेंटल, आर्किटेक्चर, कानून, होटल मैनेजमेंट, सोशल वर्क, मास कम्युनिकेशन और फैशन डिजाइनिंग के कॉलेजों की रैंकिंग तैयार की है। हमें उम्मीद है कि सर्वेक्षण के साथ रैकिंग न केवल विद्यार्थियों को कॉलेजों के चयन में मदद करेगी, बल्कि इससे अभिभावकों को समझदारीपूर्वक फैसले लेने में भी मदद मिलेगी। तो, समझदारी से चुनिए!









 
                                                 
                             
                                                 
                                                 
                                                 
			 
                     
                    