सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को राजनीतिक दलों को निर्देश दिए कि चुनाव लड़ रहे उनके जिन उम्मीदवारों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं, उसकी जानकारी वे चुनाव लड़ने से पहले चुनाव आयोग को दें। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि संसद तय करे कि आपराधिक छवि वाले विधायिका में प्रवेश नहीं कर सकें। साथ ही कोर्ट ने गाइडलाइंस जारी करते हुए कहा कि राजनीतिक पार्टियां अपने उम्मीदवारों के बारे में कम से कम तीन बार प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के जरिए उनके आपराधिक रिकॉर्ड की जानकारी दें।
सुप्रीम कोर्ट ने भाजपा नेता और एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय, पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त जेएम लिंगदोह और गैर-सरकारी संस्था (एनजीओ) पब्लिक इंटरेस्ट फाउंडेशन द्वारा दायर की गई जनहित याचिका पर ये फैसला दिया है। पांच जजों की पीठ में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस आरएफ नारिमन, जस्टिस एएम खान्विलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूण और जस्टिस इंदू मल्होत्रा शामिल थे। बता दें कि अगस्त में सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
आपराधिक रिकॉर्ड की जानकारी तीन बार प्रिंट मीडिया में दें
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आम जनता को अपने नेताओं के बारे में पूरी जानकारी होना जरूरी है। हर नेता को अपने आपराधिक रिकॉर्ड की जानकारी चुनाव लड़ने से पहले चुनाव आयोग को देनी चाहिए। इसके अलावा सभी पार्टियों को अपने उम्मीदवारों की जानकारी अपनी वेबसाइट पर डालनी होंगी। राजनीतिक पार्टियां अपने उम्मीदवारों के नामांकन के बाद कम से कम तीन बार प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के जरिए उनके आपराधिक रिकॉर्ड के बारे में बताएं।
कानून बनाए संसद
राजनीति के आपराधिकरण को खतरनाक बताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने संसद को इसके लिए कानून बनाने की जिम्मेदारी सौंपी है। कोर्ट ने कहा कि राजनीति में पारदर्शिता बड़ी चीज है, ऐसे में राजनेताओं को अपराध में शामिल होने से बचना चाहिए।
पिछली सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने अपनी दलील में कहा था कि ज्यादातर मामलों में आरोपी नेता बरी हो जाते हैं, इसलिए सदस्यता रद्द करने जैसा कोई आदेश न दिया जाए।
चुनाव लड़ने से रोक लगाने की थी मांग
याचिका में मांग की गई थी कि अगर किसी व्यक्ति को गंभीर अपराधों में पांच साल से ज्यादा सजा हो और किसी के खिलाफ आरोप तय हो जाएं तो ऐसे व्यक्ति या नेता के चुनाव लड़ने पर रोक लगाई जाए। इसके अलावा अगर किसी सासंद या विधायक पर आरोप तय हो जाते हैं तो उनकी सदस्यता रद्द होनी चाहिए।
मामले की सुनवाई के दौरान मार्च 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने यह मामला पांच जजों की संविधान पीठ को विचार के लिए भेजा था। याचिका में कहा गया कि इस समय देश में 33 फीसदी नेता ऐसे हैं जिन पर गंभीर अपराध के मामले में कोर्ट आरोप तय कर चुका है।