लॉकडाउन की वजह से राज्यों में फंसे प्रवासी मजदूरों को लेकर सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई है। याचिका में कहा गया है कि उन प्रवासी मजदूरों को घर जाने की इजाजत दी जाए, जिनका कोरोना टेस्ट निगेटिव आया है। साथ ही यह मांग भी की गई है कि राज्य सरकारों को इन लोगों को घर, गांव तक जाने की पूरी व्यवस्था करनी चाहिए।
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) के पूर्व प्रोफेसर और संस्थापक ट्रस्टी जगदीप एस छोकर और अधिवक्ता गौरव जैन की ओर से वकील प्रशांत भूषण द्वारा यह याचिका दायर की गई है। इसमें कहा गया है कि लॉकडाउन के कारण प्रवासी मजदूर सबसे बुरी तरह प्रभावित हुए हैं और वह इधर-उधर फंसे हुए हैं। कोविड-19 की जांच के बाद उन्हें अपने घर और गांव वापस जाने की इजाजत दी जानी चाहिए। निगेटिव जांच वाले मजदूरों को उनकी इच्छा के विरुद्ध घरों और परिवारों से दूर नहीं रखा जाना चाहिए। सरकार को उन्हें उनके गृहनगर और गावों तक सुरक्षित यात्रा के लिए जरूरी परिवहन मुहैया कराना चाहिए।
'रास्तों में मजदूरों को पीटा तक गया है'
याचिका में कहा गया है कि हाल ही में मीडिया में ऐसी खबरें आई हैं जो बताती हैं कि प्रवासी मजदूर अपनी मजदूरी का भुगतान नहीं करने और अपने मूल गांवों में लौटने की मांग को लेकर कुछ जगहों पर सड़कों पर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। रिपोर्टों से पता चलता है कि इन मजदूरों को स्थानीय निवासियों द्वारा परेशान किया जा रहा है और यहां तक कि कुछ मामलों में पीटा भी गया है। मजदूरों को उनके संवैधानिक अधिकारों से अनिश्चित काल के लिए निलंबित नहीं रखा जा सकता।
दिक्कतों की तस्वीरें सामने आई थीं
बता दें कि लॉकडाउन के चलते प्रवासी मजदूर काम धंधा बंद होने की वजह से अपने घर जाना चाहते हैं लेकिन देशभर में लाखों मजदूर इधर-उधर फंसे हुए हैं। लॉकडाउन के पहले चरण के दौरान मजदूरों को हुई दिक्कतों की कई तस्वीरें सामने आई थीं। लोग ट्रक, बसों में भर-भरकर घर जाने की कोशिशों में थे। कई ऐसे लोग थे जिन्हें कुछ सवारी नहीं मिली तो वे पांच-पांच सौ किलोमीटर तक की पैदल यात्रा पर निकल पड़े थे। मजदूरों का कहना था कि दूसरे राज्य में रहे तो कोरोना नहीं तो भूख से जरूर मर जाएंगे।