सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा है कि जिन अधिकारियों का न्यूनतम छह माह का कार्यकाल बचा हो, डीजीपी पद के लिए उनके नाम पर विचार किया जा सकता है।
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने पुलिस सुधार पर अपने आदेश को स्पष्ट करते हुए कहा कि यूपीएससी द्वारा डीजीपी पद के लिए की जाने वाली सिफारिश और समिति की तैयारी पूरी तरह मेरिट पर आधारित होनी चाहिए।
मिसयूज करने का लगाया है आरोप
सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी प्रकाश सिंह की ओर से दायर याचिका पर यह फैसला सुनाया है। याचिका में उन्होंने आरोप लगाया है कि तीन जुलाई, 18 के निर्देश का राज्य सरकारों द्वारा मिसयूज किया जा रहा है और वे डीजीपी पद पर नियुक्ति के लिए योग्य सीनियर अफसरों के नामों को नजरअंदाज कर रही हैं।
कोर्ट ने पिछले साल जुलाई में पुलिस सुधार पर कई निर्देश जारी किए थे। कोर्ट ने सभी राज्यों तथा केंद्र शासित प्रदेशों को किसी भी पुलिस अफसरों को कार्यवाहक डीजीपी बनाने से रोक दिया था। यह फैसला ऐसी इस तरह की टॉप नियुक्तियों में पक्षपात और भाई-भतीजावाद को देखते हुए दिया था।
सीनियरटी को लेकर रहा है विवाद
इससे पहले पंजाब में डीजीपी नियुक्ति पर विवाद हुआ था। डीजीपी मोहम्मद मुस्तफा और सिद्धार्थ चट्टोपाध्याय ने कैट में याचिका दायर की थी। जिसमें दोनों ने यह दावा किया था कि हम ज्यादा सीनियर हैं।
इस पर सुनवाई करते हुए सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल (कैट) ने यूपीएससी, पंजाब सरकार, पंजाब के पूर्व डीजीपी सुरेश अरोड़ा, नवनियुक्त डीजीपी दिनकर गुप्ता और अन्य को नोटिस जारी किया है। इन सभी को 27 मार्च तक जवाब दाखिल करने को कहा गया है। मामले की अगली सुनवाई 5 अप्रैल को होगी।