73वें स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने राष्ट्र को संबोधित किया। देश के नाम इस संबोधन में राष्ट्रपति ने कई अहम मुद्दों पर अपनी बात रखी।
पढ़िए, उनके संबोधन की अहम बातें-
राष्ट्रपति ने कहा, ‘मुझे इस बात की खुशी है कि संसद के हाल ही में संपन्न हुए सत्र में लोकसभा और राज्यसभा दोनों ही सदनों की बैठकें बहुत सफल रही हैं। यह हम सभी की जिम्मेदारी है कि अपने गौरवशाली देश को नई ऊंचाइयों पर ले जाने के लिए जोश के साथ, कंधे से कंधा मिलाकर काम करें।‘
‘जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के बदलावों से वहां के निवासी होंगे लाभान्वित’
उन्होंने कहा कि इस साल गर्मियों में सभी देशवासियों ने 17वें आम चुनाव में भाग लेकर विश्व की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक प्रक्रिया को सम्पन्न किया है। इस उपलब्धि के लिए सभी मतदाता बधाई के पात्र हैं। मुझे विश्वास है कि जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के लिए हाल ही में किए गए बदलावों से वहां के निवासी बहुत अधिक लाभान्वित होंगे।
‘गुरू नानक देवजी का 550वां जयंती वर्ष’
राष्ट्रपति ने कहा कि जिस महान पीढ़ी के लोगों ने हमें आजादी दिलाई, उनके लिए स्वाधीनता, केवल राजनीतिक सत्ता को हासिल करने तक सीमित नहीं थी। उनका उद्देश्य प्रत्येक व्यक्ति के जीवन और समाज की व्यवस्था को बेहतर बनाना भी था। गुरु नानक देवजी के सभी अनुयायियों को मैं इस पावन जयंती वर्ष के लिए अपनी हार्दिक शुभकामनाएं देता हूं। 2019 का यह साल, गुरु नानक देवजी का 550वां जयंती वर्ष भी है। वे भारत के सबसे महान संतों में से एक हैं।
‘कई प्रयास गांधी जी के विचारों के अनुरूप’
उन्होंने कहा कि वर्तमान में चल रहे हमारे अनेक प्रयास गांधीजी के विचारों को ही यथार्थ रूप देते हैं। सौर ऊर्जा के उपयोग को बढ़ाने पर विशेष जोर देना भी गांधीजी की सोच के अनुरूप है। हम अपने उन असंख्य स्वतंत्राता सेनानियों और क्रांतिकारियों को कृतज्ञता के साथ याद करते हैं, जिन्होंने हमें आजादी दिलाने के लिए संघर्ष, त्याग और बलिदान के महान आदर्श प्रस्तुत किए। यह स्वाधीनता दिवस भारत-माता की सभी संतानों के लिए बेहद खुशी का दिन है, चाहे वे देश में हों या विदेश में।
‘130 करोड़ भारतीयों को पैदा करनी होंगी संभावनाएं’
“मैंने महसूस किया है कि भारत के लोगों की रुचि भले ही अलग-अलग हों, पर सपने एक ही हैं। 1947 से पहले आजादी का लक्ष्य था, आज लक्ष्य विकास की गति तेज होना, शासन का पारदर्शी और कुशल होना है। जनादेश में लोगों की आकांक्षाएं साफ दिख रही हैं। सरकार अपनी भूमिका निभाती है, लेकिन मेरा मानना है कि 130 करोड़ भारतीय अपने कौशल से, क्षमता से और संभावनाएं पैदा कर सकते हैं। भारत के लंबे इतिहास में हमें कई बार चुनौतियों से गुजरना पड़ा है। हमने विपरीत परिस्थितियों का सामना करना पड़ा, फिर भी आगे बढ़े। अब परिस्थितियां बदल रही हैं। अनुकूल वातावरण में देशवासी जो लक्ष्य हासिल कर सकते हैं, वह कल्पना से भी परे है।”
'सबको साथ लेकर चलना हमारी संस्कृति'
राष्ट्रपति ने कहा, “जब हम अपने देश की समावेशी संस्कृति की बात करते हैं तो हमें यह भी देखना है कि हमारा आपसी व्यवहार कैसा है। भारत का समाज हमेशा से सहज और सरल रहा है। वह जियो और जीने दो के सिद्धांत पर चलता रहा है। भाषा-पंथ से ऊपर उठकर हमने एक-दूसरे का सम्मान किया है। हजारों सालों में शायद ही भारतीय समाज ने कभी भी पूर्वाग्रह को व्यक्त किया हो। सबके साथ चलना हमारी विरासत का हिस्सा रहा है। दूसरे देशों के साथ संबंधों में भी सहयोगी की भावना का हम परिचय देते हैं। भारत के सांस्कृतिक मूल्यों को हमें हमेशा बनाए रखना है।”
'समाज के अंतिम व्यक्ति के हम आदर्शों पर अटल रहेंगे'
“समाज का स्वरूप तय करने मेें युवाओं की भागीदारी निरंतर बढ़ रही है। ये बहुत खुशी की बात है कि युवा ऊर्जा की धारा को सही दिशा देने के लिए विद्यालयों में जिज्ञासा की संस्कृति को बढ़ावा दिया जा रहा है। उनकी आशाओं और आकांक्षाओं पर विशेष ध्यान देना है। समाज के अंतिम व्यक्ति के लिए भारत अपनी संवेदनशीलता बनाए रखेगा। आदर्शों पर अटल रहेगा, जीवनमूल्यों को संजो कर रखेगा और साहस की परंपरा को आगे बढ़ाएगा। हम भारतीय ज्ञान और विज्ञान के दम पर चांद और मंगल पर पहुंचने की योग्यता रखते हैं। हमारी संस्कृति यह है कि हम प्रकृति और जीवों के लिए संवेदना रखते हैं।”