तब्लीगी जमात से जुड़े मामले में की गई रिपोर्टिंग से जुड़ी याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाल के दिनों में बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का सबसे ज्यादा दुरुपयोग हुआ है।
चीफ जस्टिस एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ, जमीयत उलमा ए हिंद याचिका पर सुनवाई कर रही थी। पीठ ने कहा कि मीडिया का एक वर्ग कोविड-19 महामारी की शुरुआत में तब्लीगी जमात समागम पर सांप्रदायिक नफरत फैला रहा था। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में केंद्र द्वारा 'अस्पष्ट' और 'गलत' हलफनामे को लेकर भी उसकी खिंचाई की।
जमात की ओर से पेश वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे ने कहा कि केंद्र ने अपने हलफनामे में कहा कि याचिकाकर्ता 'बोलने और अभिव्यक्ति' की स्वतंत्रता का हनन करने की कोशिश कर रहे हैं। पीठ ने इस पर कहा कि वे अपने हलफनामे में कुछ भी कहने के लिए स्वतंत्र हैं, ठीक उसी तरह जिस तरह आप कोई भी तर्क देने के लिए स्वतंत्र हैं।
पीठ ने इस बात पर भी नाराजगी जाहिर की कि सूचना और प्रसारण मंत्रालय के सचिव के बजाय, अतिरिक्त सचिव ने हलफनामा दायर किया। इस हलफनामे में तब्लीगी जमात मुद्दे पर मीडिया रिपोर्टिंग के संबंध में कई निरर्थक और गैरजरूरी बातें कहीं गई थीं। सीजेआई सहित जस्टिस एएस बोपन्ना और वी रामसुब्रमण्यन की पीठ ने कहा अदलत में इस तरह के व्यवहार को अनुचित ठहराया। उन्होंने कहा कि अदालत में इस तरह का व्यवहार स्वीकार्य नहीं है। सीजेआई ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा, 'आप जिस तरह का व्यवहार कर रहे हैं, वैसा व्यवहार आप अदालत में नहीं कर सकते।
सुप्रीम कोर्ट ने सूचना और प्रसारण मंत्रालय के सचिव से इस तरह के मामलों में प्रायोजित मीडिया रिपोर्टिंग रोकने के लिए उठाए गए कदमों की जानकारी के साथ एक एफिडेविट भी मांगा है। अदालत ने सरकार को टीवी चैनलों को विनियमित करने के संबंध में सभी प्रासंगिक कानूनों को रिकॉर्ड पर लाने के लिए कहा है।