8 मई 1928 को बिहार के चंपारण में जन्मे रमेश चंद्र झा एक कवि और कथाकार के रूप में जितने चर्चित हुए, उससे कहीं ज़्यादा एक बाग़ी के रूप में याद किए गए।वे क्रांतिकारी होने के साथ साथ दुष्यंत और दिनकर की श्रेणी के गीतकार और राष्ट्रवादी कवि भी थे।
अपने जीवन कल में उन्होंने 70 से भी ज़्यादा किताबें लिखीं, जिनमें - भारत देश हमारा, जय बोलो हिंदुस्तान की, जवान जगते रहो, स्वागतिका, मजार का दिया और प्रियंवदा जैसे कविता संग्रह और उपन्यास शामिल हैं।
राष्ट्रवादी कवि झा के बारे में हरिवंशराय बच्चन ने अपने एक पत्र में लिखा है – “रमेशचंद्र झा की गीतों में ह्रृदय बोलता है और कला गाती है, मेरी मनोकामना है किउनके मासन से निकले हुए गीत अनेकानेक कंठों में उनकी अपनी सी प्रतिध्वनि बन कर गूंजे”।
कलम के जादूगर कहे जाने वाले रामवृक्ष बेनीपुरी ने लिखा है– “दिनकर के साथ बिहार में कवियों की जो नयी पौध जगी, उसका अजीब हस्र हुआ। आखें खोजती हैं इसके बाद आने वालीपौध कहाँ है। कभी कभी कुछ नए अंकुर ज़मीन की मोती पर्त को छेद कर झांकते हुए से दिखाई पड़ते हैं। रमेश भी एक अंकुर है। और वहमेरे घर का है, अपना है। अपनापन और पक्षपात, सुनता हूँ साथ-साथ चलते हैं किन्तु तो भी अपनापन तो छोड़ा नहीं जा सकता, ममत्व की ज़ंजीर को तोड़ा नहीं जा सकता ! पक्षपात ही सही बेधड़क कहूंगा कि रमेश की चीज़ें मुझे बहुत पसंद आती रही हैं।''
हिन्दी के जन कवि बाबा नागार्जुन ने रमेश चन्द्र झा को याद करते हुए लिखा है- “रमेश जी के व्यक्तित्व और कृतित्व से देश का कोनाकोना भली-भांती परिचित है।इनके लिए तो यही कहना अधिक समीचीन होगा कि अपनी उपमा वे स्वयं ही हैं।हिन्दी साहित्य को कईअभूतपूर्व ग्रन्थ उन्होंने दिए हैं।साहित्य की शायद ही कोई ऐसी विधा हो जिसमें रमेश जी ने नहीं लिखा होगा।बिना किसी शोर-शराबे के उन्होंने लगातार लिखकर साहित्य-साधना के क्षेत्र में एक सर्वथा नया कीर्तिमान स्थापित किया है।''