पंजाब के संगरूर में दो साल का अबोध बालक करीब 70 घंटे यानी करीब तीन दिनों के बाद 150 फुट गहरे बोरवेल से निकाला नहीं जा सका है। अधिकारियों का कहना है कि बच्चे को बचाने के लिए चलाया जा रहा अभियान अंतिम दौर में आ चुका है।
150 फुट गहरे बोरवेल में गिरा
अपने माता-पिता की एकमात्र संतान दो वर्षीय फतहवीर गुरुवार को शाम चार बजे लंबे अरसे इस्तेमाल नहीं हो रहे बोरवेल में गिर गया था। बच्चा खेलते हुए 150 फुट गहरे बोरवेल में गिर गया। सात इंच चौड़े बोरेवेल को कपड़े से ढका गया था। बच्चा दुर्घटनावश इसमें गिर गया। उसकी मां ने उसे बचाने की कोशिश की लेकिन वह नाकाम रही।
बच्चा बेहोश, ऑक्सीजन पहुंचाई
संगरूर के डिप्टी कमिश्नर घनश्याम थोरी ने बताया कि बचाव अभियान चलाया जा रहा है और अंतिम दौर में है। आज यह अभियान पूरा होने की संभावना है। उन्होंने बताया कि गड्ढे में फंसे बच्चे को खाना नहीं खिलाया जा सका है क्योंकि वह गिरने के बाद बेहोश हो गया था। हालांकि ऑक्सीजन पहुंचाई जा रही है।
एनडीआरएफ ने विशेषज्ञ को लगाया
कैमरे के माध्यम से बच्चे की दशा पर नजर रखे रहे अधिकारियों ने शनिवार को बताया था कि बच्चे में हरकत दिखाई दी। डिप्टी कमिश्नर ने करा कि बचाव अभियान की निगरानी वह खुद कर रहे हैं। यह काम अत्यंत चुनौतीपूर्ण है और कई तकनीकी पहलू जुड़े हैं। उन्होंने बताया कि नेशनल डिजास्टर रेस्पांस फोर्स (एनडीआरएफ) ने एक ऐसे अधिकारी को भी लगाया है जो बच्चों को बोरवेल से निकालने अभियान में विशेषज्ञ है।
बच्चा 125 फुट की गहराई में फंसा
बच्चा बोरवेल में करीब 125 फुट की गहराई में फंसा है। पुलिस, सिविल अधिकारियों, गांववासियों और कार्यकर्ताओं की मदद से एनडीआरएफ के जवान और सेना के विशेषज्ञ अभियान चला रहे हैं। फतहवीर को निकालने के लिए समानांतर गड्ढा खोदा गया है और उसमें 30 इंच यानी ढाई फुट मोटाई वाली सीमेंट पाइप डाले जा रहे हैं।
इतनी गहराई से बच्चे को निकालने का अभियान पहले नहीं चला
थोरी ने बताया कि दुनिया में कहीं भी ऐसा अभियान नहीं चलाया गया, जब को बच्चा बोरवेल में इतनी गहगाई में फंसा हो। हाल में हिसार में बच्चे के बोरवेल में गिरने की घटना हुई थी, उसकी भी गहराई कम थी। इस साल मार्च में 18 महीने का बच्चा हिसार जिले में बोरवेल में गिर गया था। उसे दो दिन के बाद बचाया गया था।
नन्हीं जान बचाने को जुटीं अनेक टीमें
ऑपरेशन का विवरण देते हुए थोरी ने बताया कि एनडीआरएफ के जवानों ने गुरुवार को अभियान के शुरुआती दौर में ही बच्चे के दोनों हाथ बांधने सफलता हासिल कर ली थी। लेकिन वह ऐसी विकट स्थिति में फंसा है कि उसे बाहर खींचा नहीं जा सका क्योंकि इससे बच्चे को नुकसान हो सकता था। डॉक्टरों की एक टीम को ही तैनात किया गया है जिससे बच्चे को जब भी बाहर निकाला जाए, उसे तुरंत बेहतरीन चिकित्सा सुविधा मुहैया कराई जा सके। इसके अलावा वेंटिलेटर लगी एंबुलेंस में घटना स्थल पर तैयार रखी गई है। इस अभियान में एनडीआरएफ के 26 जवान लगे हैं।
खुले पड़े बोरवेल का खतरा 13 साल बाद भी बरकरार
खुले पड़े बोरवेल का खतरा एक बार फिर से सबके सामने वास्तविकता बनकर सामने आ चुका है। ये बोरवेल बच्चों के लिए मौत बन जाते हैं। 2006 में कुरुक्षेत्र में ही पांच वर्षीय बालक प्रिंस जब इसी तरह के बोरवेल में गिरा था, उस समय भी बड़ा बचान अभियान चलाया गया। उसे 48 घंटे के बाद निकाला जा सका था।