अफगानिस्तान में तालिबान का कहर जारी है, जहां बंदूक और हथियारों के दम पर तालिबान की पकड़ मजबूत होती जा रही है। अफगानिस्तान के कई अहम प्रांतों में तालिबान का कब्जा हो रहा है और अफगान की सेना कमजोर नजर आ रही है। इस बीच तालिबानियों को रोकने और उन्हें सीधी टक्कर देने के लिए अफगानिस्तान के चारकिंट जिले की एक महिला गवर्नर सामने आई है, जिसने तालिबानी आतंकियों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। सलीमा मजारी अपने इलाके में फौज खड़ी कर रही हैं। अपनी जमीन और मवेशी बेच कर लोग हथियार खरीद रहे हैं और उनकी सेना में शामिल हो रहे हैं।
पुरुष प्रधान अफगानिस्तान के एक जिले की महिला गवर्नर माजरी तालिबान से लड़ने के लिए पुरुषों की फौज जुटाने निकली हैं। पिकअप की फ्रंट सीट पर खुद सलीमा माजरी मजबूती से बैठी रहती हैं। वह उत्तरी अफगानिस्तान के ग्रामीण इलाकों से गुजरती हैं और अपनी फौज में स्थानीय लोगों को शामिल करती रहती हैं। उनकी गाड़ी की छत पर लगे लाउडस्पीकर में एक मशहूर स्थानीय गाना बजता रहता है। गाड़ी पर गाना बज रहा था, "मेरे वतन... मैं अपनी जिंदगी तुझ पर कुर्बान कर दूंगा"। इन दिनों सलीमा अपने इलाके के लोगों से यही करने को कह रही हैं। बता दें कि मई की शुरूआत से ही तालिबान अफगानिस्तान के ग्रामीण इलाकों में उमड़ा चला आ रहा है।
हिंदुस्तान की खबर के अनुसार, यही वो समय था जब अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अमेरिका की सबसे लंबी लड़ाई खत्म करने और फौज की वापसी का हुक्म दिया था। इसके बाद से बहुत दूरदराज के पहाड़ी गांवों और घाटियों पर तालिबान ने कब्जा कर लिया है। अब हालत यह हो गई है कि तालिबान ने अफगान के काबुल को छोड़कर अफगान के प्रमुख प्रांतों को अपने कब्जे में ले लिया है। हालांकि, तालिबान अब तक चारकिंत पर पूरी तरह से कब्जा नहीं कर पाया है। बाल्ख प्रांत के मजार-ए-शरीफ से करीब घंटे भर की दूरी पर मौजूद चारकिंत सावधान है। तालिबान के शासन में महिलाओं और लड़कियों की पढ़ाई लिखाई और नौकरी पर रोक लग गई थी। 2001 में तालिबान का शासन खत्म होने के बाद भी लोगों का रवैया कुछ कुछ ही बदला है। इस पर गववर्नर माजरी कहती हैं, 'तालिबानी बिल्कुल वही हैं जो मानवाधिकारों को कुचल देते है। सामाजिक रूप से लोग महिला नेताओं को स्वीकार नहीं कर पाते।
दरअसल, अफगानिस्तान मूल की सलीमा माजरी का जन्म 1980 में एक रिफ्यूजी के तौर पर ईरान में हुआ, जब उनका परिवार सोवियत युद्ध से भाग गया था। उनकी पढ़ाई-लिखाई ईरान में ही हुई है। तेहरान विश्वविद्यालय से स्नातक होने के बाद उन्होंने दशकों पहले अपने माता-पिता को छोड़कर देश (अफगानिस्तान) जाने का फैसला करने से पहले विश्वविद्यालयों और अंतर्राष्ट्रीय प्रवासन संगठन में विभिन्न भूमिकाएं निभाईं। 2018 में उन्हें पता चला कि चारकिंत जिला के गवर्नर पद की वैकेंसी आई है। यह उनकी पुश्तैनी मातृभूमि थी, इसिलए उन्होंने इस पद के लिए आवेदन भर दिया। इसके बाद वह गवर्नर के लिए चुनी गईं। तालिबान के खतरे को देखते हुए और जिले को सुरक्षित करने के लिए उन्होंने सिक्योरिटी कमिशन की स्थापना की थी, जो स्थानीय सेना में भर्ती का काम देखता था। सलीमा अपने कार्यकाल में तालिबानियों के नाक में दम कर चुकी हैं।
बता दें कि माजरी हजारा समुदाय से आती हैं और समुदाय के ज्यादातर लोग शिया हैं, जिन्हें सुन्नी मुसलमानों वाला तालिबान बिल्कुल पसंद नहीं करता। तालिबान और इस्लामिक स्टेट के लड़ाके उन्हें नियमित रूप से निशाना बनाते हैं। मई में ही उन्होंने राजधानी के एक स्कूल पर हमला कर 80 लड़कियों को मार दिया था।
गौरतलब है कि माजरी के शासन वाले जिले का करीब आधा हिस्सा पहले ही तालिबान के कब्जे में जा चुका है। अब वे बाकि हिस्से को बचाने के लिए लगातार काम कर रही हैं। सैकड़ों स्थानीय लोग जिनमें किसान, गड़रिए और मजदूर भी शामिल हैं, उनके मिशन का हिस्सा बन चुके हैं। माजरी बताती हैं, "हमारे लोगों के पास बंदूकें नहीं थीं लेकिन उन लोगों ने अपनी गाय, भेड़ें और यहां तक की जमीन बेच कर हथियार खरीदे। वो दिन रात मोर्चे पर तैनात हैं, जबकि ना तो उन्हें इसका श्रेय मिल रहा है, ना ही कोई तनख्वाह"।
वहीं, पुलिस के जिला प्रमुख सैयद नजीर का मानना है कि स्थानीय लोगों के प्रतिरोध के कारण ही तालिबान इस जिले पर कब्जा नहीं कर पाया है। माजरी ने अब तक 600 लोगों को भर्ती किया है, जो लड़ाई के दौरान सेना और सुरक्षा बलों की जगह ले रहे हैं।चारकिंत में गांव के लोगों का जहन आज भी तालिबान की बुरी यादों से भरा हुआ है। गवर्नर माजरी जानती हैं कि वो अगर वापस लौटे तो फिर किसी महिला के नेतृत्व को कभी स्वीकार नहीं करेंगे। वे कहती हैं, "महिलाओं की पढ़ाई लिखाई के मौकों पर रोक लग जाएगा और युवाओं की नौकरियां नहीं मिलेंगी"।