1990 में हिरासत में मौत के एक केस में आजीवन कारावास की सजा पाने वाले पूर्व आइपीएस अधिकारी संजीव भट्ट की पत्नी ने आरोप लगाया है कि उनके पति को राजनीतिक कारणों से शिकार बनाया गया है और उनकी जान को खतरा भी है। दूसरी ओर अधिकारिक सूत्रों ने इन आरोपों को मनगढ़ंत करार दिया है।
तत्कालीन सीएम के कहने पर केस दर्ज हुआ
संजीव भट्ट की पत्नी श्वेता भट्ट ने यहां एक प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि यह उनके परिवार के बहुत बुरा वक्त है क्योंकि संजीव भट्ट को एक केस में दोषी माना गया है। यह केस प्रभुदास वैष्णवी की हिरासत में मौत से संबंधित है। भाजपा नेता लाल कृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा के दौरान बंद के आह्वान के बाद सांप्रदायिक दंगे भड़कने पर प्रभुदास समेत 133 लोगों को जामनगर थाने में पकड़ा गया था। श्वेता भट्ट ने कहा कि उनके पति ने न तो किसी को गिरफ्तार किया और न ही किसी को हिरासत में लिया क्योंकि उनके पास इसका अधिकार ही नहीं था। प्रभुदास की मौत भी हिरासत के 18 दिनों के बाद हुई। उन्होंने मेजिस्ट्रेट या किसी अन्य के समक्ष पुलिस के उत्पीड़न की भी कोई शिकायत नहीं की थी। प्रभुदास के परिवार के किसी सदस्य ने नहीं बल्कि विश्व हिंदू परिषद के अमृतलाल वैष्णवी ने हिरासत में उत्पीड़न की शिकायत की थी। हालांकि सूत्र कहते हैं कि गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री चमनभाई पटेल के कहने पर केस दर्ज किया गया था।
गवाहों से सवाल करने की भी अनुमति नहीं मिली
श्वेता भट्ट ने कहा कि बांबे पुलिस एक्ट के सेक्शन 161 के तहत किसी मामले में सरकारी अधिकारी को अधिकतम एक-दो साल की सजा हो सकती है, 23 साल की नहीं। सरकारी अधिकारी पर केस चलाने के लिए सीआरपीसी के सेक्शन 197 के तहत सरकार से अनुमति आवश्यक होती है। भट्ट के मामले में सरकार ने कोई अनुमति नहीं दी थी, फिर भी उन पर केस चलाया गया। 300 गवाहों में से सिर्फ 32 से पूछताछ की गई। प्रतिवादी को उनसे सवाल करने की भी अनुमति नहीं दी गई।
एक अन्य केस में भी फंसाया था
पूर्व आइपीएस अधिकारी की पत्नी ने दावा किया कि हिरासत में मौत के केस में कार्रवाई न होने पर उनके पति को 23 साल पुराने एक अन्य पालनपुर केस में गिरफ्तार किया गया और इसमें जल्दी सुनवाई की गई। हालांकि सरकारी सूत्र कहते हैं कि खुद संजीव भट्ट ने इस मामले में रोजाना सुनवाई की हाई कोर्ट में सहमति दी थी।
पैतृक निवास अवैध बताकर तोड़ दिया
उनकी पत्नी ने आरोप लगाया कि 2002 के गोधरा दंगों की जांच से गठित नानावटी कमीशन के समक्ष पूछताछ की गई। उन्हें निलंबित करके बाद में बर्खास्त किया गया। उन्हें त्यागपत्र देने की अनुमति नहीं दी गई। इसका मकसद उनके भत्ते और पेंशन रोकना था। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने उनके पेतृक निवास का एक हिस्सा अवैध बताकर गिरा दिया।
उनकी जान को गंभीर खतरा
श्वेता ने आरोप लगाया कि उनके जीवन को खतरा है। वह एक सड़क दुर्घटना में बाल-बाल बच गईं। दुर्घटना वाले वाहन पर कोई नंबर प्लेट या दस्तावेज नहीं है। वह जहां भी जाती हैं, वहां उनका पीछा किया जाता है। हमारे घर के आसपास भी लोग रहते हैं। लेकिन वह न्याय के लिए संघर्ष करती रहेंगी। अब उनके जीवन का यही उद्देश्य है। संजीव भट्ट के बेटे शांतनु भट्ट ने भी कहा कि उनके पिता कानून के अनुसार काम करने वाले अधिकारी रहे हैं।