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सरदार पटेल ने सुभद्रा कुमारी चौहान को दिलवाया था न्याय, कांग्रेस ने तो दिया था धोखा

"झांसी की रानी" जैसी अमर कविता लिखने वाली  हिंदी की प्रख्यात लेखिका और अमर स्वतंत्रता सेनानी सुभद्रा...
सरदार पटेल ने सुभद्रा कुमारी चौहान को दिलवाया था न्याय, कांग्रेस ने तो दिया था धोखा

"झांसी की रानी" जैसी अमर कविता लिखने वाली  हिंदी की प्रख्यात लेखिका और अमर स्वतंत्रता सेनानी सुभद्रा कुमारी चौहान को आज़ादी की लड़ाई में टिकट के बंटवारे में कांग्रेस ने धोखा दिया था। सुभद्रा जी ने इसकी शिकायत सरदार बल्लभ भाई पटेल से की थी और पटेल के हस्तक्षेप के बाद  अंततः सुभद्रा जी को लेजिसलेटिव असेंबली के चुनाव में जबलपुर से टिकट मिला और उस चुनाव में वह निर्विरोध जीतीं।

सुभद्रा जी के जीवन पर राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय द्वारा कल मंचित नाटक "खूब लड़ी मर्दानी सुभद्रा की जुबानी" में यह रहस्योद्घटन किया गया जिससे पता चलता है कि जिस कांग्रेस के नेतृत्व में वह आज़ादी की लड़ाई में दो बार जेल गयी, (एक बार तो अपने स्वतंत्रता सेनानी पति लक्ष्मण सिंह चौहान के साथ भी जेल गयीं) उसमें उस जमाने के मशहूर कांग्रेसी नेता और प्रसिद्ध नाटककार सेठ गोविंद दास की बेटी को टिकट देने के लिए सुभद्रा जी का नाम काट दिया गया।

इस नाटक का निर्देशन संगीत नाटक अकेडमी पुरस्कार से सम्मानित रंगकर्मी भारती  शर्मा ने किया है। नाटक लिखा है एनएसडी के रंगकर्मी आसिफ अली ने। इस नाटक से कल एनएसडी रंगमंडल समर फेस्टिवल का उद्घटान हुआ। नाटक में यह दावा क़िया गया है कि सुभद्रा जी को कांग्रेस के इस धोखे की सूचना उस ज़माने के दिग्गज कांग्रेसी नेता द्वारका प्रसाद मिश्र ने दी जो बाद में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे और खुद कवि थे।

उन्होंने सुभद्रा जी को बताया कि कांग्रेस की प्रांतीय कमेटी ने एक परिवार में केवल एक व्यक्ति को टिकट देने का निर्णय किया है। लेकिन सेठ गोविन्ददास ने खुद चुनाव न लड़ने का फैसला किया है और वह अपनी जगह  अपनी बेटी को जबलपुर से चुनाव लड़वाना चाहते हैं इसलिए उनकी बेटी रत्न कुमारी को टिकट मिलेगा।

यह सुनकर सुभद्रा जी और उनके स्वतंत्रता सेनानी  पति लक्ष्मणसिंह को गहरा सदमा लगा। तब सुभद्रा जी ने सरदार पटेल को पत्र लिखा तब पटेल ने हस्तक्षेप किया और उनको पत्र से जानकारी दी कि अब प्रांतीय कमेटी ने आपको टिकट देने का निर्णय किया है।

नाटक में सुभद्रा जी कहती हैं कि उन्होंने चुनाव में टिकट के लिए आज़ादी की लड़ाई में भाग नहीं  लिया था पर उनके साथ उस कांग्रेस ने उन्हें धोखा दिया जिसके लिए उन्होंने 25 साल तक  त्याग और तपस्या की। 

नाटक में सुभद्रा जोशी के संघर्ष और त्याग को दिखाया गया है। नाटक की निर्देशक भारती शर्मा ने भी कहा कि आज़ादी की लड़ाई में और साहित्य में सुभद्रा जी का जो योगदान है उसे देखते हुए उनका सही मूल्यांकन नहीं हुआ। आज़ादी के बाद कांग्रेस ने भी उनको यथोचित सम्मान नहीं दिया।

सुभद्रा जी एक मध्यवर्गीय परिवार की बहू थीं और उन पर परिवारवालों ने घूंघट में रहने के लिए मजबूर किया लेकिन सुभद्रा जीने उसका विरोध  किया। जब वह  गर्भवती थी तब उन्हें  पहली बार गिरफ्तार किया गया लेकिन जेल में महिला वार्ड न होने से छोड़ दिया गया। बाद में वह दोबारा जेल गयीं।पंडित सुंदरलाल ने ही उन्हें जबलपुर भेजा था, आज़ादी की लड़ाई में कांग्रेस की सेवा करने के लिए और वह वहीं बस गयीं।

नाटक में सुभद्रा की स्कूल की सहपाठी एवम प्रख्यात कवयित्री महादेवी वर्मा को नहीं दिखाया गया और गांधी जी केसाथ उनकी भेंट को भी नहीं दिखाया गया है। इस पर निर्देशक भारती शर्मा का कहना है कि चूंकि नाटक आज़ादी की लड़ाई को ध्यान में रखकर लिखा गया इसलिए इन प्रसंगों को छोड़ दिया गया। एक घण्टा 50 मिनट के इस नाटक से सुभद्रा जी के व्यक्तित्व के कई अनछुए पहलुओं पर प्रकाश डाला गया है।

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