पूर्व सासंदों को आजीवन पेंशन और भत्ता देने के खिलाफ दाखिल जनहित याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है। सात मार्च को इस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था।
जस्टिस जे चेलमेश्वर और संजय किशन कौल की पीठ ने दलीलें सुनने के बाद याचिका खारिज कर दी। केंद्र ने कोर्ट को दलील दी थी कि पूर्व सांसदों को पेंशन और अन्य लाभ न्यायोचित हैं ताकि वह बतौर सांसद का कार्यकाल पूरा होने बाद भी अपनी गरिमा को बनाए रख सकें। केंद्र ने पीठ को कहा कि वित्त विधेयक 2018 में सांसदों को वेतन और भत्तों को पुननिर्धारित किया गया है।
कोर्ट ने इस मामले में केंद्र से पूछा था कि सांसदों के वेतन और भत्तों को बारे में स्वतंत्र सिस्टम बनाने के बारे में आपकी क्या योजना है? कोर्ट ने ये भी कहा कि दुनिया में किसी भी लोकतंत्र में ऐसा नहीं होता कि कोर्ट नीतिगत मुद्दों पर फैसला दे। केंद्र सरकार की ओर से पेश अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने पूर्व सासंदों को यात्रा करनी पड़ती है और देश-विदेश में जाना पड़ता है। वहीं लोक प्रहरी एनजीओ की तरफ से सरकार की इस दलील का विरोध करते हुए कहा कि 82 प्रतिशत सांसद करोड़पति है, लिहाजा पेंशन की जरूरत उनको नहीं है।