भीमा-कोरेगांव हिंसा के मामले में पांचों सामाजिक कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारियों को चुनौती देने वाली याचिका पर बुधवार को सुनवाई टल गई है। अब सुप्रीम कोर्ट में इस मामले में 17 सितंबर को सुनवाई होगी। तब तक सभी कार्यकर्ता अपने घर में ही नजरबंद रहेंगे।
हिंसा की साजिश रचने और नक्सलवादियों से संबंध रखने के आरोप में पुणे पुलिस ने 28 अगस्त को देश के अलग-अलग हिस्सों से वामपंथी विचारक और कवि वरवर राव, वकील सुधा भारद्वाज, मानवाधिकार कार्यकर्ता अरुण फरेरा, गौतम नवलखा और वरनॉन गोंजाल्विस को गिरफ्तार किया था। पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने 12 सितंबर तक हाउस अरेस्ट यानी नजरबंद रखने के आदेश दिए थे और इससे पहले 29 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने इन गिरफ्तारियों पर रोक लगा दी और छह सितम्बर तक अपने ही घर में नजरबंद रखने के लिए कहा था। इस दौरान जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा था कि असहमति लोकतंत्र का सेफ्टी वॉल्व है। इसे रोका तो प्रेशर कुकर फट जाएगा।
मुम्बई हाई कोर्ट ने पुलिस को लगाई फटकार
मुम्बई हाई कोर्ट ने महाराष्ट्र पुलिस को इस मामले में प्रेस कॉन्फ्रेंस करने पर फटकार लगाई थी। हाई कोर्ट ने एक अपील पर सुनवाई करते हुए महाराष्ट्र पुलिस के सवाल किया था कि जब यह मामला अभी अदालत में विचाराधीन है तो पुलिस इसे लेकर मीडिया के सामने कैसे चली गई। गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने अपनी प्रेस कॉन्फ़्रेंस में कहा था कि उनकी जांच से पता चला है कि माओवादी संगठन एक बड़ी साजिश रच रहे थे। प्रेस कॉन्फ़्रेंस के दौरान महाराष्ट्र पुलिस ने मीडिया के सामने कई पत्र भी पढ़े जिसके जरिए यह बताया गया कि ये सभी सामाजिक कार्यकर्ता माओवादी सेंट्रल कमेटी के संपर्क में थे। पुलिस ने यह आरोप भी लगाए थे कि इन कार्यकर्ताओं के संपर्क कश्मीर में मौजूद अलगाववादियों के साथ भी हैं।
छह राज्यों में मारे गए थे छापे
पुणे पुलिस ने छह राज्यों में छापे मार कर पांच और माओवादी कार्यकर्ताओं को गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम कानून और आइपीसी के तहत गिरफ्तार किया। इतिहासकार रोमिला थापर सहित पांच लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर गिरफ्तारियों को चुनौती दी थी।