सुप्रीम कोर्ट ने एनडीटीवी लिमिटेड को राहत देते हुए शुक्रवार को आयकर विभाग की तरफ से भेजे गए उस नोटिस को खारिज कर दिया जिसमें वित्त वर्ष 2007-08 के लिए कंपनी की आय के फिर से निर्धारण की बात कही गई थी। कोर्ट ने कहा कि एनडीटीवी पर 2007 में अपने गैर-समाचार कारोबार के लिए विदेशी निवेश जुटाने के दौरान मनी लॉन्ड्रिंग का आरोप बेबुनियाद था।
सुप्रीम कोर्ट ने रेवेन्यू डिपार्टमेंट को उस असेसमेंट को फिर से खोलने की इजाज़त देने से इनकार कर दिया, जिस पर बरसों पहले फ़ैसला हो चुका था। 2015 में टैक्स अधिकारियों ने इसकी मांग की थी और आरोप लगाया था कि एनडीटीवी ने तथ्य छिपाए हैं और पैसे को राउंड-ट्रिप कराया है।
हाई कोर्ट के आदेश को किया दरकिनार
जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस दीपक गुप्ता की पीठ ने दिल्ली हाई कोर्ट के 10 अगस्त 2017 के उस आदेश को दरकिनार कर दिया जिसमें उसने आयकर विभाग के नोटिस के खिलाफ एनडीटीवी लिमिटेड की याचिका को खारिज कर दिया था। कोर्ट ने एनडीटीवी के आयकर निर्धारण का मामला दोबारा खोलने के लिये जारी नोटिस खारिज करते हुए कहा कि इस मामले को चार साल बाद खोले जाने के बारे में विभाग द्वारा सारे तथ्यों का खुलासा नहीं किया गया है इसलिये इसे खारिज किया जाता है।
आयकर विभाग ने भेजा था नोटिस
आयकर विभाग ने एनडीटीवी को मार्च 2015 में आय के फिर से निर्धारण के लिये नोटिस भेजा था। विभाग ने यह पाया था कि वित्त वर्ष 2007-08 में कथित रूप से 642 करोड़ रुपये का आकलन एनडीटीवी के लिये कर निर्धारण में नहीं किया गया था।