कोविड-19 महामारी के मद्देनजर सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को केंद्र और जम्मू-कश्मीर प्रशासन से 4जी मोबाइल इंटरनेट सेवाओं की बहाली याचिका पर जवाब मांगा है। हालांकि अटॉर्नी जनरल ने कोर्ट को बताया कि जम्मू और कश्मीर में उग्रवाद जारी है जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता। याचिकाकर्ता का कहना था कि लॉकडाउन के बीच डॉक्टर से वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग के जरिये मशवरा लेने, छात्रों की ऑनलाइन क्लास के लिए 4जी बेहद ज़रूरी है। मामले में अगली सुनवाई 27 अप्रैल को होगी।
जस्टिस एन वी रमना, जस्टिस आर सुभाष रेड्डी और जस्टिस बी आर गवई की पीठ के समक्ष केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल पेश हुए। याचिका में सरकार के उस आदेश को चुनौती दी गई है जिसमें मोबाइल इंटरनेट की गति 2 जी तक ही सीमित रखी गई है। याचिका में कहा गया है कि जम्मू-कश्मीर की जनता को 4 जी इंटरनेट सेवाओं से वंचित रखना भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 19, 21 और 21ए का उल्लंघन है।
स्वास्थ्य और शिक्षा की दी दलील
याचिकाकर्ता की ओर से वकील ने कहा कि 4जी इंटरनेट सेवाओं के नहीं होने के कारण स्वास्थ्य और शिक्षा पर असर पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि बड़े पैमाने पर किसी डॉक्टर से परामर्श नहीं किया जा सकता है। बिना 4जी के ऑनलाइन कक्षाएं नहीं चल सकती हैं। राज्य में अभी 2जी स्पीड की ही अनुमति है।
उग्रवाद को नहीं किया जा सकता अनदेखा
सरकार के पक्ष से अटॉर्नी जनरल ने बताया कि जम्मू और कश्मीर में उग्रवाद जारी है जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता। सवाल राष्ट्रीय सुरक्षा का है। अभी कुछ दिन पहले एक आतंकी मारा गया। लॉक डाउन होने के बावजूद 500 लोग उसके जनाजे में शामिल हुए। इस पर याचिकाकर्ता के वकील ने कहा, जिन क्षेत्रों में ऐसी चिंता है, वहां कनेक्टिविटी को प्रतिबंधित किया जा सकता है। इंटरनेट प्रतिबंध पूरे राज्य में नहीं बढ़ाया जाना चाहिए।