सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश में एनकाउंटर्स को लेकर दायर याचिका पर योगी सरकार को नोटिस जारी किया है। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा, 'यह काफी गंभीर मसला है जिस पर विस्तृत रूप से जांच की जरूरत है।‘ इस मामले में 12 फरवरी को अगली सुनवाई होगी।
याचिका में मांग की गई है कि राज्य में हुई पुलिस मुठभेड़ की सीबीआई या एसआईटी से जांच कराई जाए और इसकी निगरानी कोर्ट करे। वहीं, यूपी सरकार की ओर से सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी ने दावा किया कि राज्य प्रशासन ने सभी प्रक्रियाओं का पालन किया है।
'यह राज्य प्रायोजित आंतक है'
याचिका में कहा गया है कि, राज्य आतंकवाद या बड़े अपराधियों से लड़ने के लिए संवैधानिक सिद्धांतों के खिलाफ ऐसे साधनों को अपना नहीं सकता है। मुठभेड़ के नाम पर ऐसी अतिरिक्त न्यायिक हत्याओं को राज्य प्रायोजित आतंक माना जाता है। इसमें योगी आदित्यनाथ के 'अपराधी जेल में होंगे या मुठभेड़ में मारे जाएंगे' जैसे बयानों को भी संदर्भित किया गया है।
इससे पहले एक गैर- सरकारी संगठन की ओर से दायर याचिका में आरोप लगाया गया था कि 2017 में 1100 एनकाउंटर्स हुए थे जिसमें 49 लोग मारे गए थे और 370 घायल हुए थे। जवाब में योगी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दाखिल किया था। जिसमें सरकार ने एनकाउंटर की विस्तृत जानकारी उपलब्ध कराई थी।
मानवाधिकार आयोग ने भी मांगा था जवाब
एनकाऊंटर्स को लेकर राज्य मानवधिकार आयोग ने भी प्रदेश सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था।
वहीं, एनकाउंटर्स पर राजनीतिक दलों ने भी योगी सरकार पर निशाना साधा था। सपा अध्यक्ष अखिलेश ने पिछले दिनों गाजीपुर में भड़की हिंसा में पुलिसकर्मी की मौत के बाद कहा था, 'ये घटना इसलिए घटी है क्योंकि मुख्यमंत्री सदन में हो या मंच पर हो उनकी एक ही भाषा हैं ठोक दो। कभी पुलिस को नहीं समझ आता किसे ठोंकना हैं, कभी जनता को नहीं समझ आता है किसे ठोंकना हैं।'