सुप्रीम कोर्ट मंगलवार को तीन सौ सैनिकों की याचिका पर सुनवाई के लिए तैयार हो गया है। सैनिकों ने आर्म्ड फोर्सेस स्पेशल पॉवर एक्ट (अफस्पा) वाले इलाकों में ऑपरेशन चलाने पर अपने खिलाफ दर्ज होने वाली प्राथमिकी को चुनौती दी है।। सैनिकों ने दलील दी है कि अगर उन पर ऑपरेशंस के लिए मुकदमा चलेगा तो सेना और अर्धसैनिक बलों का हौसला कमजोर होगा।
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने अपनी एक टिप्पणी में कहा था कि नागरिकों के खिलाफ अत्यधिक बल का प्रयोग नहीं किया जा सकता, ऐसा करना हमारे लोकतंत्र के लिए एक चुनौती होगा। याचिका में कहा गया है कि मोर्चे पर अपने दुश्मनों से लड़ते समय बचाव के अधिकार की जरूरत होती है। अगर सुरक्षा बलों को यह अधिकार नहीं होगा और दुश्मनों पर ऑपरेशंस चलाने के लिए उन पर मुकदमा चलाया जाएगा तो हमारी संप्रभुता और निष्ठा खतरे में पड़ेगी।
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस ए एम खनविलकर की पीठ सैनिकों की ओर से पेश वकील ऐश्वर्या भाटी की दलील पर सुनवाई के लिए सहमत हो गई। भाटी ने कहा कि अशांत क्षेत्रों में अपनी ड्यूटी निभाने के लिए सैनिकों पर अभियोग दर्ज कराया जा रहा है।
याचिका में कहा गया है कि सैन्य कर्मियों के खिलाफ प्राथमिकी और अभियोग चलाना अफस्पा के प्रावधानों के खिलाफ है क्योंकि अफस्पा ड्यूटी के दौरान दुश्मन के खिलाफ अभियान चलाने पर सैन्य कर्मियों को अभियोजन से छूट प्रदान करता है। इस तरह के अभियोजन यदि चलेंगे तो इससे सेना और अर्धसैनिक बलों का हौसला कमजोर होगा।
इसके अलावा मणिपुर एनकाउंटर मामले में मणिपुर पुलिस के छङ कमांडो ने भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है जिनके खिलाफ सीबीआई ने चार्जशीट दाखिल की थी। कमांडो ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस लोकुर की उस टिप्पणी पर आपत्ति जताई है जिसमें जस्टिस लोकुर ने सुनवाई के दौरान हत्यारे शब्द का इस्तेमाल किया था।
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल दिए फैसले में कहा था कि अफस्पा वाले इलाकों में हुए मुठभेड़ की भी पुलिस या सीबीआई जांच हो सकती है। सेना के लोगों पर भी सामान्य अदालत में मुकदमा चल सकता है। कोर्ट इन दिनों मणिपुर में हुए सेना के ऑपरेशंस की सीबीआई जांच की निगरानी भी कर रहा है।