पश्चिम बंगाल पंचायत चुनाव को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि निर्विरोध जीती गई सीटों पर दोबारा पंचायत चुनाव नहीं होंगे तथा 20159 सीटों के नतीजे घोषित करने पर लगी रोक हटा दी है। यानी अब राज्य चुनाव आयोग नतीजे घोषित कर सकता है। कोर्ट ने कहा कि जिस तरह के आरोप लगाए गए कि नामांकन दाखिल नहीं करने दिया गया, उसके लिए 30 दिनों के भीतर चुनाव याचिका दाखिल की जा सकती है। इस फैसले से ममता बनर्जी और टीएमसी को बड़ी राहत मिली है।
सुप्रीम कोर्ट ने कलकत्ता हाईकोर्ट के ईमेल से नामांकन दाखिल करने के आदेश को रद्द किया। कोर्ट ने कहा कि ईमेल या व्हाट्सएप्प से नामांकन नहीं हो सकता क्योंकि ये कानून में नहीं है। हालांकि, पिछली सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने संकेत दिया था कि अदालत जांच करेगी कि क्या बिना विरोध चुनाव होना चुनाव की निष्पक्षता को नष्ट करता है या नहीं।
ममता सरकार ने किया था विरोध
ममता सरकार ने दोबारा चुनावों का विरोध करते हुए कहा कि भाजपा की राज्य में कोई उपस्थिति नहीं है। राज्य सरकार ने कहा कि चुनाव में हिंसा दोबारा मतदान के लिए आधार नहीं हो सकता, वरना हर उम्मीदवार जिसके पास जीतने का कोई मौका नहीं है वह हिंसा करा सकता है और चुनाव रोक सकता है। सीपीएम और भाजपा ने तर्क दिया था कि उनके उम्मीदवारों पीटा गया और नामांकन दाखिल करने से रोका गया।
34 फीसदी पर नहीं था विपक्ष से उम्मीदवार
ग्राम पंचायतों में 48,650 पदों, जिला परिषदों में 825 पद और पंचायत समितियों में 9, 217 पदों के लिए चुनावों में चुनाव हुए थे और आरोप लगाया गया कि लगभग 34 प्रतिशत सीटों पर विपक्ष से कोई प्रत्याशी नहीं था। ग्राम पंचायत, जिला परिषद और पंचायत समिति के लिए कुल 58,692 सीटों में से 20,159 पर टीएमसी के उम्मीदवार निर्विरोध जीते थे।
हाई कोर्ट के फैसले पर लगाई थी रोक
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने कलकत्ता हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी थी जिसमें राज्य चुनाव आयोग को पंचायत चुनावों के लिए ई-मेल के माध्यम से नामांकन पत्र स्वीकार करने के लिए कहा गया था। सुप्रीम कोर्ट ने उन उम्मीदवारों के नाम राजपत्र में घोषित नहीं करने का निर्देश दिया था।