सुप्रीम कोर्ट ने जेपी समूह को झटका देते हुए गुरुवार को राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) की इलाहाबाद पीठ को समूह की कंपनी जेपी इंफ्राटेक लिमिटेड (जेआईएल) के खिलाफ दिवालियापन कानून के तहत फैसला करने को कहा। सुप्रीम कोर्ट ने कंपनी की नई नीलामी प्रक्रिया में इस समूह या इसके प्रोमोटर्स को भाग लेने से रोक दिया।
समाचार एजेंसी पीटीआइ के अनुसार, चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि दिवालियापन संहिता के तहत मामले के निपटाने के लिए 180 दिन की समय सीमा गुरुवार से शुरू होगी। बेंच में जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ भी शामिल थे। बेंच ने यह भी कहा है कि जेपी इंफ्राटेक लिमिटेड द्वारा सुप्रीम कोर्ट में जमा कराए गये 750 करोड़ रुपए एनसीएलटी की इलाहाबाद पीठ को हस्तांतरित कर दिए जाएंगे। शीर्ष अदालत ने भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को जेआईएल की होल्डिंग कंपनी जयप्रकाश एसोसिएट लिमिटेड (जेएएल) के खिलाफ दिवालियापन कानून के तहत एक अलग से कार्रवाई शुरू करने की भी अनुमति दी।
बेंच ने कहा कि ऋण शोधन अक्षमता एवं दिवालियापन संहिता (आईबीसी) में किए गए संशोधनों के अनुसार घर खरीदने के लिए पैसा जमा कराने वाले ग्राहकों को भी वित्तीय ऋणदाताओं के समूह में शामिल किया जाए। बेंच ने उसके समक्ष लंबित सभी याचिकाओं एवं आवेदनों का निपटान किया।
सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले इस मामले में जेआईएल, जेएएल के ग्राहकों, बैंकों और वित्तीय संस्थानों समेत विभिन्न हितधारकों और दिवालियापन समाधान पेशेवर (आईआरपी) द्वारा मांगी गयी अंतरिम राहत पर सुनवाई के बाद अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था। इस मामले में आईडीबीआई बैंक ने जेएएल के खिलाफ 526 करोड़ रुपये का कर्ज न चुकाने के आरोप में एसीएटी में दिवालियापन कानून के तहत निपटान का मामला दायर किया था। सहायक सॉलिसिटर जनरल ने सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई के दौरान कहा था कि चूंकि अब मकान खरीदने वाले ग्रहाकों को भी दिवालियापन संहिता के तहत वित्तीय ऋणदाता माना गया है, इसलिए इस मामले के वित्तीय ऋणदाताओं (सामान्यत: वित्तीय संस्थान) की समित को समाधान योजना पर निर्णय करते समय ग्राहकों का पक्ष भी सुना जाना चाहिए।
ग्राहकों का प्रतिनिधित्व करने वाले वकीलों ने जेएएल की इस दलील का विरोध किया था कि उसे आवास परियोजनाएं पूरा करने की छूट मिलनी चाहिए। उनका कहना था कि कानून के तहत कंपनी पर इसकी रोक लगी है। बेंच ने स्थिति की गंभीरता पर गौर करते हुए कहा कि हालांकि, कंपनी की देनदारी 2000 करोड़ रुपये की थी, जो अब बढ़ कर 30,000 करोड़ रुपये तक पहुंच गई है।
कंपनी ने कहा था कि उसने सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री में 750 करोड़ रुपये जमा करा रखें हैं और ग्रहकों का मूलधन चुकाने के लिए 600 करोड़ रुपये और चाहिए होंगे। उसकी ओर से यह भी कहा कि यदि उसे उसकी कुछ चिह्नित परिसंपत्तियों की बिक्री की इजाजत हो, तो वह 600 करोड़ रुपये जमा करा सकती है। इन संपत्तियों में रीवा (मध्यप्रदेश) का एक सीमेंट कारखाना भी है। ग्राहक कंपनी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में चले गए थे। उनका कहना था कि करीब 32000 लोगों ने कंपनी की परियोजनाओं में फ्लैट बुक कराए थे और वे अब किस्तें जमा कर रहे हैं।