पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा है कि देश पर इस समय भाई चारा, आर्थिक मंदी और कोरोना वायरस का खतरा मंडरा रहा है। उन्होंने कहा कि चिंता इस बात की है कि ये जोखिम न केवल भारत की आत्मा को तोड़ सकते हैं, बल्कि दुनिया में आर्थिक और लोकतांत्रिक शक्ति के रूप में हमारी वैश्विक स्थिति को नुकसान पहुंचा सकते हैं। पीएम मोदी को केवल अपने शब्दों से नहीं, काम से भी भरोसा दिलाना होगा कि वह इन खतरों से परिचित हैं। साथ ही देश को आश्वस्त करना होगा वह इस पर काबू पाने में हमारी सहायता कर सकते हैं।
अपने एक लेख में उन्होंने लिखा कि दिल्ली में पिछले दिनों भारी हिंसा हुई। सांप्रदायिक तनाव की आंच कुछ राजनीतिक वर्ग के साथ-साथ हमारे समाज के अनियंत्रित वर्ग की ओर से भी फैलाई गई। इसमें विश्वविद्यालय परिसर, सार्वजनिक स्थान और निजी घर को निशाना बनाया गया। कानून-व्यवस्था से जुड़ी संस्थाओं ने नागरिकों की रक्षा का अपना धर्म छोड़ दिया है। सांप्रदायिक हिंसा की हर घटना महात्मा गांधी के भारत पर धब्बा है। कुछ ही सालों में, उदार लोकतांत्रिक तरीकों से वैश्विक स्तर पर आर्थिक विकास का मॉडल बनने के बाद अब भारत आर्थिक संकट से जूझ रहा है। ये बहुसंख्यकों को सुनने वाला देश बन गया है।
सामाजिक अशांति मंदी को बढ़ाएगी
पूर्व पीएम ने लिखा कि ऐसे समय में जब हमारी अर्थव्यवस्था चरमरा रही है, ऐसे सामाजिक अशांति का असर केवल आर्थिक मंदी को बढ़ाएगा। अब यह अच्छी तरह से मान लिया गया है कि देश की अर्थव्यवस्था का संकट मौजूदा समय में निजी क्षेत्र की ओर से किए गए नए निवेश की कमी के कारण है। निवेशक, उद्योगपति और कारोबारी नई परियोजनाओं को शुरू करने के लिए तैयार नहीं हैं।
सरकार को दिए ये सुझाव
पूर्व प्रधानमंत्री ने सरकार को सुझाव दिया है कि वह अपनी सारी ताकत और कोशिश कोरोना वायरस को काबू करने पर लगा देनी चाहिए। इसके लिए पर्याप्त तैयारी करनी होगी। नागरिकता संशोधन कानून को बदला जाए या वापस लिया जाए, जिससे राष्ट्रीय एकता बहाल हो। सटीक और विस्तृत वित्तीय योजना बनाई जाए जिससे खपत की मांग बढ़े और अर्थव्यवस्था को सुधारा जा सके। उन्होंने कहा कि गहरे संकट का क्षण भी अर्थव्यवस्था को अच्छा अवसर दे सकता है।