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जब कोई किसी गरीब की आवाज उठाए तो कोर्ट को उसे सुनना चाहिए: जस्टिस दीपक गुप्ता

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस दीपक गुप्ता बुधवार को रिटायर हो गए। रिटायरमेंट के मौके पर उनके सम्मान में...
जब कोई किसी गरीब की आवाज उठाए तो कोर्ट को उसे सुनना चाहिए: जस्टिस दीपक गुप्ता

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस दीपक गुप्ता बुधवार को रिटायर हो गए। रिटायरमेंट के मौके पर उनके सम्मान में विदाई समारोह का आयोजन किया गया। देश में फैले कोरोना वायरस  के प्रकोप के चलते ये कार्यक्रम वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए किया गया। देश के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ। जस्टिस गुप्ता ने अपने संबोधन में न्याय व्यवस्था पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि जब कोई किसी गरीब की आवाज उठाता है तो कोर्ट को उसे सुनना चाहिए और जो भी गरीबों के लिए किया जा सकता है वो करना चाहिए। उन्होंने कहा कि किसी भी परिस्थिति में संस्थान की अखंडता (ईमानदारी) को दांव पर नहीं लगाया जा सकता है। न्यायपालिका को हर अवसर पर उठना चाहिए। मुझे यकीन है कि मेरे भाई जजों के चलते यह सुनिश्चित किया जाएगा कि लोगों को अदालत से जो चाहिए वह मिल जाए। जज ऑस्ट्रिच की तरह अपना सिर नहीं छिपा सकते, उन्हें ज्यूडिशियरी की दिक्कतें समझकर इनसे निपटना चाहिए।

जस्टिस दीपक गुप्ता ने अपने विदाई के भाषण में कहा कि न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका को साथ मिल कर काम करना चाहिए, लेकिन मुश्किल वक्त में, जैसा कि इस दौर से हम गुजर रहे हैं, न्यायपालिका को आम लोगों और गरीबों के हक में काम करना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘जब कोर्ट अपना काम करती है और नागरिकों के हित में फैसले देती है तो कभी-कभी टकराव स्थिति उत्पन्न हो जाती है, लेकिन मेरी राय में टकराव एक बहुत अच्छा संकेत है कि कोर्ट सही से काम कर रहे हैं।’

'अदालतों को गरीबों की आवाज जरूर सुननी चाहिए'

उन्होंने कहा कि न्यायपालिका को खुद ही अपना ईमान बचाना चाहिए। देश के लोगों को ज्यूडिशियरी में बहुत भरोसा है। मैं देखता हूं कि वकील कानून के बजाय राजनीति और विचारधारा के आधार पर बहस करते हैं। ऐसा नहीं होना चाहिए। संकट के समय, खासकर अभी जो संकट है उसमें मेरे और आपके संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं होगा। लेकिन, गरीबों के साथ हमेशा ऐसा होता है। उन लोगों की आवाज नहीं सुनी जाती, इसलिए उन्हें भुगतना पड़ता है। अगर कोई उनकी आवाज उठाता है तो अदालतों को जरूर सुनना चाहिए। उनके लिए जो भी किया जा सकता है, करना चाहिए। जस्टिस दीपक गुप्ता ने कहा, ‘जब एक जज कोर्ट में बैठता है तो हमें अपनी धार्मिक मान्यताओं को भूलना पड़ता है और संविधान के आधार पर फैसले लेने होते हैं, जो कि हमारा बाइबिल, गीता, कुरान, गुरु ग्रंथ साहिब सब है।’

जजों को ही लोगों के बीच विश्वसनीयता बनाए रखना जरूरी

जस्टिस गुप्ता ने आगे कहा कि इस देश में जजों को ही लोगों के बीच विश्वसनीयता बनाए रखना है और मुझे उम्मीद है कि ऐसा ही होगा। उन्होंने कहा कि अदालत का काम सिर्फ ये देखना नहीं है कि लोगों को जीने का अधिकार मिले। बल्कि उनको गरिमा के साथ जीने का अधिकार मिले, ये भी देखना है।

इस दौरान जस्टिस गुप्ता ने  कहा कि कोई अच्छा वकील तभी हो सकता है, जब वह पहले अच्छा इंसान हो। आपको सभी की समस्याओं को लेकर संवेदनशील होना होगा। हम एक्टिविस्ट हो सकते हैं लेकिन मैने कभी बाउंड्री नहीं पार की। हम जानते हैं कि हमारी सीमाएं क्या हैं। जब हम चेक और बैलेंस के बीच काम करते हैं तो हमें पता होता है कि सीमाएं क्या हैं

ऐसा रहा जस्टिस गुप्ता का करि

साल 1978 में दिल्ली विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री लेने वाले जस्टिस गुप्ता ने हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट से प्रैक्टिस की शुरुआत की थी। 2004 में जस्टिस गुप्ता को वहां जज के रूप में नियुक्त किया गया। मार्च 2013 में जस्टिस गुप्ता ने त्रिपुरा हाईकोर्ट के पहले जज के तौर पर शपथ ग्रहण की। 2016 में तबादले के बाद वह छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बने। इसके बाद 2017 में जस्टिस दीपक गुप्ता ने सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के तौर पर शपथ लेकर पदभार ग्रहण किया।

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